उत्तराखंड

 “केदारनाथ में हेलीकॉप्टर सेवा: सुविधा या विनाश का मार्ग?”

ब्यूरों रिपोर्ट…

केदारनाथ धाम, उत्तराखंड का एक अत्यंत पवित्र तीर्थ, जहां श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए कठिन पर्वतीय यात्रा तय करते हैं। हाल के वर्षों में सरकार ने यहां हेलीकॉप्टर सेवाओं को बढ़ावा दिया है ताकि अधिक तीर्थयात्री कम समय में दर्शन कर सकें। लेकिन यह सुविधा पर्यावरण, जैव विविधता और हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक खतरे के रूप में उभर रही है। इस लेख में हम तथ्यों और तर्कों के आधार पर यह विश्लेषण करेंगे कि कैसे यह सुविधा, सुविधाजनक होने के बावजूद, दीर्घकालिक रूप से केदारनाथ क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रही है।

1. हेलीकॉप्टर उड़ान और ग्लेशियरों पर प्रभाव…।

केदारनाथ के आसपास स्थित ग्लेशियर जैसे चोराबाड़ी ग्लेशियर पहले ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से सिकुड़ रहे हैं। हेलीकॉप्टर की आवाज और गर्म हवा इन पर विपरीत असर डालती है:

हेलीकॉप्टर के इंजन से निकलने वाली गर्मी बर्फ को तेज़ी से पिघलाने में योगदान देती है।

कंपन (vibration) और शोर से ग्लेशियर की प्राकृतिक संरचना प्रभावित होती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, उच्च आवृत्ति (high-frequency) की ध्वनि तरंगें बर्फ की परतों में दरारें पैदा कर सकती हैं।

Wadia Institute of Himalayan Geology की रिपोर्ट के अनुसार चोराबाड़ी ग्लेशियर 2013 की तबाही के बाद से तेज़ी से पीछे हट रहा है।

2. जैव विविधता और पशु-पक्षियों पर संकट…।

हेलीकॉप्टर के लगातार उड़ान से पशु और पक्षियों की पारंपरिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं:

हिमालयी मोनाल, जो उत्तराखंड का राज्य पक्षी है, अत्यधिक शोरगुल वाले क्षेत्रों से पलायन करने लगता है।

कस्तूरी मृग, जो इस क्षेत्र में दुर्लभता से पाया जाता है, अत्यधिक आवाज़ और मानव गतिविधियों के कारण छिपने को मजबूर हो जाता है।

पक्षियों के प्रजनन चक्र में बाधा आती है क्योंकि वे घोंसले छोड़ देते हैं।

3. तीर्थयात्रा का ‘स्पिरिचुअल वैल्यू’ खोता जा रहा है…।

पैदल यात्रा की कठिनाई ही केदारनाथ के दर्शन को विशेष बनाती थी।

हेलीकॉप्टर से मात्र 5-10 मिनट की यात्रा में भक्त ‘दर्शन’ तो कर लेते हैं, लेकिन वह आध्यात्मिक अनुभव खो जाता है जो पैदल चलकर, कठिनाइयों का सामना कर प्राप्त होता है।

केदारनाथ को “तप और श्रद्धा का धाम” से “टूरिज्म हब” में बदला जा रहा है।

4. सरकार का दोहरा मापदंड….।

धामी सरकार एक ओर हिमालयी पर्यावरण की रक्षा की बात करती है, वहीं दूसरी ओर कॉर्पोरेट टेंडर के माध्यम से हेली सेवाओं को बढ़ावा देती है:

2024 में राज्य सरकार ने निजी कंपनियों को अधिक उड़ानों की अनुमति दी जिससे हेलीपैड्स की संख्या और उड़ानों की आवृत्ति में वृद्धि हुई।

इसके पीछे तीर्थाटन की आड़ में व्यावसायिक लाभ का स्पष्ट उद्देश्य दिखता है।

5. समाधान और सुझाव…।

हेलीकॉप्टर उड़ानों की संख्या सीमित की जाए।

आवश्यकता के अनुसार केवल वृद्ध, अस्वस्थ या दिव्यांग तीर्थयात्रियों के लिए ही अनुमति दी जाए।

हेलीपैड्स को कम से कम संवेदनशील क्षेत्रों में बनाया जाए।

वैकल्पिक पर्यावरण-अनुकूल साधनों को बढ़ावा दिया जाए, जैसे कि बैटरी चालित ट्रॉली या पोर्टर सेवाएं।

पैदल यात्रा के मार्गों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जाए।

हेलीकॉप्टर सुविधा अल्पकालिक लाभ तो दे सकती है, लेकिन यदि इसी रफ्तार से इसे बढ़ावा दिया गया, तो भविष्य में केदारनाथ केवल ‘धार्मिक पर्यटन स्थल’ बनकर रह जाएगा। उसकी पारिस्थितिक और आध्यात्मिक पहचान खत्म हो जाएगी। धामी सरकार को चाहिए कि वह विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधे — वरना भावी पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

यह लेख सिर्फ आलोचना नहीं, चेतावनी है — कि हिमालय की आत्मा को व्यापार की गूंज से दबाया नहीं जा सकता।

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