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जौनसार_बावर के मिथ्य और सत्य को टटोलती किताब।

अनील दत्त शर्मा

देहरादून। 16 फरवरी 2024 को देहरादून के राजभवन में मननीय राज्यपाल ले0ज गुरमीत सिंह ने बियॉन्ड पोलियण्डरी : चेंचिंग प्रोफाइल आफ एन एथनिक हिमालयन ट्राइब का विमोचन किया। ये किताब लिखी है भारतीय कोस्ट गार्ड के जौनसार बावर के ग्राम हाजा निवासी सेवानिवृत अपर महानिदेशक श्री कृपा राम नौटियाल ने। नौटियाल का कोस्ट गार्ड सेवा का एक लंबा अनुभव रहा है। उनके नाम कॉस्ट गार्ड में सेवा के दौरान कई कीर्तिमान दर्ज हैं. मसलन वह कोस्ट गार्ड की 5 कमांडस में से 4 के कमांडर रहे हैं यानी इन चार कमांडस को वह लीड कर चुके हैं और ऐसा करने वाले अमूमन वह पहले अपर महानिदेशक हैं।

बहरहाल आज बात उनके द्वारा लिखी गई किताब बियॉन्ड पोलियण्डरी : चेंचिंग प्रोफाइल आफ एन एथनिक हिमालयन ट्राइब की। ये किताब जौनसार बावर के उन पहलुओं को बखूबी टटोलती है, उनमें झांकती हैं जिन पर बाहरी समाज में जौनसार बावर की नकारात्मक छवी को किसी खास मकसद से गढ़ और रचा गया। जौनसार की उस छवि पर गढ़ी गई नकारात्मकता को फैक्ट्स और लॉजिकल तरीके से इस किताब के माध्यम से संचारित कर उसे सकारात्मकता से सजाया और पिरोया गया है। इस किताब के माध्यम से जौनसार बावर में पोलियण्डरी यानी बहुपति प्रथा, जौनसार का सांस्कृतिक-सामाजिक ढांचा, यहां के रीति रिवाज, मान्यताएं, विवाहों के प्रकार, यहां की आर्थिकी संराचना, देवताओं की उत्पत्ती आदि को 12 भागों में आकार दिया गया है। ये किताब मुख्यता जौनसार बावर की बहुपति प्रथा के सत्य और मिथ्य के बारे में आंकड़ों के साथ बताती है। किताब के माध्यम से नौटियाल ने फैक्ट्स के साथ बताया है कि पोलियण्डरी यानी बहुपति प्रथा जौनसार के अलावा देश और विदेश में कहाँ कहाँ चलन में थी और वेदों में भी इसका जिक्र है। किताब बाताती है कि ये प्रथा जौनसार में कैसे आरम्भ हुई और उसका सामाजिक और सांस्कृतिक पहलु क्या है। मसलन विभिन्न लेखकों की किताबों का हवाला देते हुए ये बताया गया है कि बहुपति प्रथा इस क्षेत्र में पांडवों के आने से पहले चलन में थी, जिसका अनुसरण पांडवों ने भी किया, लेकिन अब ये प्रथा कुछ दशक पूर्व से चलन में नहीं है। ये भी बताया गया है कि पहले ये प्रथा क्यों चलन में थी और अब ये लुप्त क्यों हो गई है। विस्तार से इन तथ्यों और कारणों को जानने के लिए आपको ये किताब पढ़नी होगी। इसके अलावा किताब बियॉन्ड पोलियण्डरी: चेंचिंग प्रोफाइल आफ एन एथनिक हिमालयन ट्राइब जौनसार बावर और यहां के बाशिंदों के बारे में भी विस्तार से जनाकरी उपलब्ध करवाती है। मसलन जौनसार बावर में कूणिंद काल से ले कर आज के आधुनिक जौनसार बावर का यात्रा वृतांत इस किताब में आपको पढ़ने को मिलेगा। नौटियाल ने लिखा है कि कूणिंदों ने महाभारत के यु़द्ध में पांडवों का साथ दिया था और इसी कारण पूरे जौनसार में पांडवों को पूजा जाता है उन्हें माना जाता। इसी कड़ी में किताब के माध्यम से बताया गया है कि पांड़वों का प्रभाव इस क्षेत्र में क्यों और कैसे पड़ा। कालसी स्थित अशोका शिलालेख की महत्वता का जिक्र करते हएु विस्तार में प्राचीन काल में कालसी और जौनसार बावर की महत्वता को दर्शाया गया है। नौटियाल की किताब में अंकित किया गया है कि जौनसार के निवासी असल में इंडो आर्यन भाषा बोलने वाले वर्ग के लोग हैं जो खश या ख़शिया वंश से आते हैं और जौनसार बावर के सवर्णों में उनकी गिनती होती है। खश वर्ग का जिक्र पुराणों और महाभारत में भी आता है, ऐसा इस किताब के माध्यम से बताया गया है। किताब में लेखक सक्सेना सहित कई लेखकों का हवाला देते हुए बाताया गया है कि जौनसार के ब्राह्मण  और राजपूत आर्यन हैं।

किताब में एक चैप्टर है जिसका नाम है झंगेल टू जींस। पैंट की तरह झंगेल जौनसार बावर के पुरुषों की एक खास पोशक है, जिसे भेड़ों की उन से बनाया जाता है और इसे बर्फ के दौरान पुरुष पहन कर पशु आहार लेने काम पर जाते हैं। इस चैप्टर के माध्यम से नौटियाल ने बताया है कि कैसे जौनसार का युवा झंगेल यानी पुराने दौर से जींस यानी नए दौर में ट्रांसफॉर्म हुआ है।किताब का ये पाठ एक तरीके से इसका मजमून है कि जौनसार अब बदल गया है और अब वो अगड़े समाज के साथ कदम से कदम मिलाने को तैयार है। नौटियाल ने किताब के माध्यम से जौनसार के युवाओं में बढ़ती नशे की लत पर भी चिंता ज़ाहिर की है।किताब बियॉन्ड पोलियण्डरी में जौनसार बावर के लोक गीत हरुल का हिंदी से अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने को मिलेगा. यहाँ हिंदी को रोमन टेक्स्ट में लिखा गया है. बेहतर होता अगर इस हरुल के हिंदी भाग को देवनागरी स्क्रिप्ट में लिखा जाता जिससे उसे समझने में और सहूलियत मिलती। इसके अलावा किताब में जौनसार में प्रचलित देव माली व्यवस्था, जादू टोने आदि के बारे में भी ज़िक्र किया गया है जिसे विस्तार से जानने  के लिए आपको इस किताब को पढ़ना पड़ेगा।जौनसार बवार के इतिहास, महिलाओं की स्थिति, कृषि, बागवानी, प्राचीन न्याय व्यवस्था यानी चौंतरु-सियाणा व्यवस्था, विवाहों के प्रकार, त्योहार, लोक गीत-संगीत के प्रकार,  लोक संस्कृति, महासू देवता सहित अन्य देवताओं की उत्पत्ती, प्राचीन, मध्यकाल, मुगलकाल, ब्रिटिश काल के जौनसार और आज के जौनसार की तस्वीर को संजोती ये किताब आपको पढ़नी चाहिए ताकि आप जौनसार और उसकी प्रथाओं को किसी खास चश्में से न देखें बल्कि सत्य और मिथ्य के अधार पर जनजातिय क्षेत्र जौनसार का आंकलन करें।

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