चुनावी जंग में नारे बेजान, साइबर योद्धाओं के जिम्मे कमान

रिपोर्ट:प्रियांशु सक्सेना।
देहरादून। दशक भर पहले तक नारे चुनाव की जान हुआ करते थे। उम्मीदवार और उनके समर्थक रोचक नारों से जनता के मन, मस्तिष्क में प्रभाव डालते थे परंतु तकनीकी युग में नारों का शोर गुम हो गया है।सभी राजनीतिक दलों के साइबर योद्धा सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं। संचार क्रांति का प्रभाव चुनाव पर भी पड़ा है। चुनाव प्रचार के पुराने तरीके के स्थान पर अब राजनीतिक दल और प्रत्याशी सोशल मीडिया व दूसरे माध्यमों पर ध्यान दे रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि सोशल मीडिया पर भी प्रचार का तरीका बदल गया है। छोटे-छोटे व्हाट्सएप ग्रुप, ब्रॉडकास्ट ग्रुप, अलग-अलग नामों से फेसबुक पेज, इंस्टाग्राम पर लाइव स्टोरी और रील के साथ प्रचार की जंग चल रही है।एक वक्त था जब लाउडस्पीकर पर देशप्रेम के गाने बजाकर प्रचार करती गाड़ियां सड़कों पर घूमती थीं। वाहनों पर लगे सियासी दलों के झंडे दिखते थे। तब चुनाव की घोषणा होते ही पूरा माहौल प्रचारमय हो जाता था। कुछ चुनाव आयोग की सख्ती का प्रभाव रहा और संचार साधनों में हुई प्रगति असर है कि देखते-देखते प्रचार के तरीके बदल गए। अब सियासी दल सोशल मीडिया पर लोगों को जोड़ते हैं। फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम पर तुरंत लाइव डाल दिया जाता है।
19 अप्रैल को प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर प्रथम चरण में मतदान होने है। इसके लिए अब कुछ ही घंटे शेष है। सभी राजनीतिक दल एवं निर्दलीय उम्मीदवार सांसद बनने की जद्दोजहद कर रहें है और लोगों से उनके पक्ष में वोट देने की मांग कर रहे हैं।
हरिद्वार लोस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है। जहां भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल चुनाव जीतने को लेकर अपना दम दिखा रहे हैं और सोशल मीडिया की जंग में बढ़त बनाए हुए है। वहीं स्वतंत्र उम्मीदवार उमेश कुमार भी किसी से पीछे नहीं है। प्रत्याशियों की टीम के सदस्य हर जनसंपर्क व कार्यक्रम को वीडियो व फोटो के रूप में फेसबुक, व्हाट्सएप ग्रुप व इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट करते हैं।
छोटे-छोटे व्हाट्सएप ग्रुप बनाए
सोशल मीडिया पर प्रत्याशियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म संभालने वाले आईटी सेल से जुड़े लोगों ने छोटे-छोटे व्हाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं। ब्रॉडकास्ट इन ग्रुपों पर आईटी सेल से जुड़े लोग सुबह से ही सक्रिय हो जाते हैं और इन ग्रुपों पर ही प्रत्याशी के दिन भर का कार्यक्रम डाला जाता है। प्रत्याशी के छोटे-छोटे भाषण रिकॉर्ड करके व्हाट्सएप ग्रुप पर डाले जा रहे हैं। यह ग्रुप वार्ड स्तर पर और सेक्टर जोन बनाकर बनाए गए हैं। राजनीतिक दलों से जुड़े आईटी सेल से जुड़े लोगों का कहना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार करना कम खर्चीला है। साथ ही एक साथ कई लोगों तक पहुंच भी हो जाती है।
बुजुर्गों को समझ नही आ रहा नया चुनावी माहौल
इस दौर में युवा वर्ग तो इंटरनेट मीडिया पर चल रहे चुनावी अभियान का आनंद ले रहे हैं लेकिन बुजुर्ग मतदाताओं को सब कुछ सुना-सूना लग रहा है। डोईवाला निवासी 85 वर्षीय त्रिलोक तायल ने बताया कि एक दौर था जब भोंपू बांधकर प्रत्याशी व समर्थक गांव में आते थे। नए-नए नारे की गूंज मुद्दों को लेकर मतदाताओं की खामोशी तोड़ने पर मजबूर कर देती थी। तेलिवाला निवासी अब्दुल रज्जाक ने बताया कि उस वक्त के नारों से न किसी को ठेस पहुंचती थी और न ही आचार संहिता का उल्लंघन होता था। सोशल मीडिया में प्रचार प्रसार हो रहे हैं कही से कही तक भी चुनावी माहौल नहीं लग रहा है। माजरी निवासी संतोष देवी ने बताया की सोशल मीडिया समझ में नहीं आता है। कोई प्रत्याशी जन घर आकर हमारे मुद्दों पर काम करने का वादा करेंगा, उसी के पक्ष में मतदान किया जाएगा।