उत्तराखंड

भाजपा उत्तराखंड में भी सुनियोजित तरीके से दलितों को साथ जोड़कर कांग्रेस को झटका देने की रणनीति पर काम कर रही है।

ब्यूरों रिपोर्ट
भारतीय जनता पार्टी को जल्द ही नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलने जा रहा है। उससे पहले पार्टी के रीति नीति अनुसार संगठन के कई राज्यों में चुनाव पूरे कर लिए गये है। पार्टी ‘सबका साथ सबका विकास’ के अपने मूल मंत्र को लेकर गंभीर है। इसी कड़ी में पार्टी ने दलित चेहरों को संगठन मे महत्वपूर्ण भूमिका दी है। दलित वर्ग का वोट देहरादून जिले की पछवादून मे किसी भी दल को सत्ता सौपने की ताकत रखता है। इसी कड़ी मे भाजपा ने अपने ग्रामीण जिलाध्यक्ष को दोबारा संगठन की कमान सौंपी है इसके साथ ही कालसी मंडल अध्यक्ष का पद पर भी एक दलित चेहरा ही चुना गया है। कालसी चकराता विधानसभा सीट का हिस्सा है और यहां से हर चुनाव में दलितों का वोट भारी मात्रा में कांग्रेस को जाता है। जो कांग्रेस की जीत मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब नवनियुक्त निर्वाचित मंडल अध्यक्ष प्रदीप वर्मा पहली बार अपने कालसी मंडल पहुंचे तो उनके स्वागत के लिए कई ढोल दमाऊं ताल ठोक रहे थे। पहली बार चकराता विधानसभा में दलित समाज को लगा कि भाजपा मे भी हमारा भविष्य बेहतर हो सकता है। अब इसका फायदा स्थानीय स्तर पर नेता कितना उठा पाते है ये देखने वाली बात होगी…..।

भाजपा द्वारा दलित समाज को संगठन से जोड़ने का संदेश…..
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले कुछ वर्षों में दलित समाज को अपने संगठन से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। यह केवल एक राजनीतिक रणनीति नहीं बल्कि एक सामाजिक और वैचारिक विस्तार की दिशा में कदम भी माना जा सकता है। भाजपा द्वारा दलित समुदाय को संगठित करने के प्रयासों के पीछे कई प्रमुख संदेश निहित हैं।
1. सामाजिक समरसता और ‘सबका साथ, सबका विकास’….
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा दिया। दलित समाज को संगठन में शामिल करने का प्रयास इस संदेश को मजबूत करता है कि भाजपा सभी वर्गों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने की नीति पर काम कर रही है। पार्टी यह दर्शाना चाहती है कि वह सिर्फ सवर्णों या किसी विशेष वर्ग की पार्टी नहीं, बल्कि समाज के सभी तबकों की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती है।

2. कांग्रेस और अन्य दलों की दलित राजनीति को चुनौती
पारंपरिक रूप से दलित समाज का झुकाव कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर अधिक रहा है। भाजपा ने इस धारणा को बदलने के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं। वह यह संदेश देना चाहती है कि दलितों के अधिकारों की रक्षा और उनके सशक्तिकरण के लिए वह किसी अन्य दल से कम नहीं है।
3. राजनीतिक समावेशन और नेतृत्व विकास…।
भाजपा दलित समुदाय से नए नेताओं को आगे लाकर यह दिखाना चाहती है कि वह केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं कर रही, बल्कि वास्तविक प्रतिनिधित्व प्रदान कर रही है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में दलित नेताओं को संगठन और सरकार में प्रमुख पदों पर जगह देकर यह दर्शाया गया है कि भाजपा दलित नेतृत्व को भी बढ़ावा दे रही है।

4. हिंदुत्व और जातीय राजनीति का संतुलन…..
भाजपा हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए दलितों को यह संदेश देना चाहती है कि वे भी इस सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। ‘सामाजिक समरसता अभियान’, दलितों के बीच राम मंदिर निर्माण को लेकर जागरूकता, और अंबेडकर जयंती को बड़े स्तर पर मनाने जैसे कदम इसी रणनीति का हिस्सा हैं।

5. कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से विश्वास निर्माण
दलित समाज को भाजपा के करीब लाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना, मुद्रा योजना, और शौचालय निर्माण जैसी पहलें शामिल हैं। इन योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोगों में बड़ी संख्या दलित समुदाय से है। इससे भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल नारेबाजी तक सीमित नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्य कर रही है।भाजपा द्वारा दलित समाज को संगठन से जोड़ने का प्रयास राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह न केवल भाजपा के लिए एक नया वोट बैंक तैयार करने की रणनीति है, बल्कि सामाजिक समरसता और प्रतिनिधित्व की दिशा में भी एक कदम है। हालांकि, इस प्रयास की वास्तविक सफलता इस पर निर्भर करेगी कि भाजपा किस हद तक दलित समाज की आकांक्षाओं को समझकर उनके लिए ठोस नीतियां लागू कर पाती है।

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