अंतरराष्ट्रीय

देश की सुरक्षा पर बढ़ता खतरा: घुसपैठिये और हमारी जिम्मेदारी।

ब्यूरों रिपोर्ट…..

हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर देश की आंतरिक सुरक्षा पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। जब भी इस तरह की घटनाएं घटती हैं, हम अक्सर सीमाओं के पार से आने वाले आतंकियों की बात करते हैं, लेकिन अब समस्या सिर्फ सीमा पर नहीं, हमारे शहरों और गांवों के बीच भी पनप रही है।

देश के विभिन्न हिस्सों में पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, रोहिंग्या मुसलमानों की अवैध घुसपैठ न सिर्फ जनसंख्या असंतुलन पैदा कर रही है, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी यह एक बड़ा खतरा बन गई है। कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि अवैध घुसपैठिये फर्जी दस्तावेजों के सहारे भारतीय पहचान बना लेते हैं, फिर इन्हीं दस्तावेजों का इस्तेमाल कर देश की नाजुक संस्थाओं और संरचनाओं में सेंध लगाने का प्रयास करते हैं।

खास चिंता का विषय उन महिलाओं का भी है जिन्होंने पाकिस्तान में शादी की, परंतु वहां की नागरिकता नहीं ली और फिर भारत लौट आईं। इन महिलाओं का कानूनी दर्जा अस्पष्ट है और कई मामलों में सुरक्षा एजेंसियों के लिए इनकी पृष्ठभूमि की जांच करना बेहद कठिन हो जाता है। जब पड़ोसी देश की नीयत भारत के खिलाफ साजिशों से भरी हो, तब इस तरह की अनदेखी हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है।

रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में भी स्थिति गंभीर है। म्यांमार से निष्कासित ये लोग बांग्लादेश के रास्ते भारत में प्रवेश कर चुके हैं और अब देश के विभिन्न कोनों में बस्तियां बना रहे हैं। कुछ आतंकी संगठनों के साथ इनकी मिलीभगत की खबरें भी आ चुकी हैं। दिल्ली, जम्मू, हैदराबाद, और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में इनकी बढ़ती संख्या भविष्य में सामाजिक और सांस्कृतिक तनाव का कारण बन सकती है।

भविष्य के भारत के लिए चुनौतियाँ

यह स्थिति केवल वर्तमान की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य, देश के सामरिक ढांचे और सांस्कृतिक ताने-बाने को भी कमजोर कर सकती है। अगर आज हमने कठोर कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वर्षों में हालात काबू से बाहर हो सकते हैं।

समाधान के लिए आवश्यक कदम

  • अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें निष्कासित करना।
  • फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले नेटवर्क पर सख्त कार्रवाई।
  • सीमाओं की निगरानी को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करना।
  • नागरिकता कानूनों को और सख्त बनाना और लागू करना।
  • आम नागरिकों को भी सतर्क रहने और संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रेरित करना।

आज जब भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, तब इस तरह के आंतरिक खतरों को नजरअंदाज करना आत्मघाती होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्र की रक्षा केवल सैनिकों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।

“चुप रहना भी अपराध है, जब राष्ट्र संकट में हो।”

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