उत्तराखंड

चकराता: नेतृत्व की चुप्पी और जनता की अनसुनी आवाज….।

ब्यूरों रिपोर्ट…

उत्तराखंड के देहरादून जिले में बसी चकराता विधानसभा, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जानी जाती है। त्यूणी, चकराता और कालसी तहसीलें इस क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा हैं, जो न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय जनता के जीवन का आधार भी हैं। लेकिन आज यह क्षेत्र एक गंभीर प्रशासनिक संकट से जूझ रहा है—तीनों तहसीलें उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) विहीन हैं। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है, बल्कि क्षेत्र के नेतृत्व की उदासीनता पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। विशेष रूप से, सात बार के विधायक प्रीतम सिंह, जिला पंचायत प्रशासक मधु तोमर चौहान और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रामशरण नौटियाल जैसे प्रभावशाली नेताओं की चुप्पी इस मामले को और भी गंभीर बनाती है। यह लेख इन नेताओं की जवाबदेही पर सवाल उठाता है और उनकी चुप्पी को जनता के सामने एक आईना दिखाने का प्रयास करता है।

चकराता: प्रीतम सिंह का अजेय गढ़, लेकिन जवाबदेही का अभाव…।

चकराता विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रीतम सिंह का गढ़ माना जाता है। सात बार के विधायक और कांग्रेस के विधायक दल के नेता प्रीतम सिंह ने इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। करीब 32 प्रतिशत दलित मतदाताओं के समर्थन और उनकी राजनीतिक सूझबूझ ने उन्हें इस सीट पर अजेय बना दिया है। लेकिन सवाल यह है कि इतने लंबे समय तक जनता का विश्वास जीतने वाले प्रीतम सिंह आज इस गंभीर प्रशासनिक संकट पर चुप क्यों हैं? एसडीएम जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों का खाली रहना केवल कागजी कमी नहीं है; यह क्षेत्र की जनता के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है। तहसील स्तर पर जमीन विवाद, आपदा प्रबंधन, विकास योजनाओं का कार्यान्वयन और अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए एसडीएम की भूमिका केंद्रीय होती है। इन पदों के खाली रहने से न केवल प्रशासनिक कार्य ठप हो रहे हैं, बल्कि जनता की समस्याएं भी अनसुनी रह रही हैं। प्रीतम सिंह, के पास इस मुद्दे को विधानसभा से लेकर सरकार तक उठाने की पूरी ताकत है। फिर भी, उनकी ओर से कोई ठोस कदम या बयान सामने नहीं आया है। क्या यह जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ नहीं है?

मधु तोमर चौहान और रामशरण नौटियाल: स्थानीय नेतृत्व की निष्क्रियता..।

चकराता क्षेत्र की जिला पंचायत प्रशासक मधु तोमर चौहान और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रामशरण नौटियाल भी इस क्षेत्र के प्रमुख चेहरों में से हैं। मधु चौहान ने 2007 और 2012 में प्रीतम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और कड़ी टक्कर दी। रामशरण नौटियाल, जो 2022 में चकराता सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, भी क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। लेकिन इन दोनों नेताओं की चुप्पी भी उतनी ही निराशाजनक है। जिला पंचायत प्रशासक के रूप में मधु तोमर चौहान की जिम्मेदारी केवल पंचायत स्तर तक सीमित नहीं है। क्षेत्र की समस्याओं को उजागर करने और प्रशासन के साथ समन्वय स्थापित करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती थी। इसी तरह, रामशरण नौटियाल, जो स्थानीय मुद्दों से भली-भांति परिचित हैं, इस मामले में जनता की आवाज बन सकते थे। लेकिन दोनों की ओर से इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आना यह दर्शाता है कि नेतृत्व अपनी जिम्मेदारियों से कन्नी काट रहा है।

जनता का विश्वास और नेतृत्व की जवाबदेही…।

चकराता की जनता ने प्रीतम सिंह को बार-बार चुना, मधु तोमर चौहान को जिला पंचायत की जिम्मेदारी दी, और रामशरण नौटियाल को भी स्थानीय नेतृत्व के रूप में सम्मान दिया। लेकिन जब बात क्षेत्र के मूलभूत प्रशासनिक ढांचे की आती है, तो ये नेता क्यों खामोश हैं? क्या जनता का विश्वास केवल वोट तक सीमित है?एसडीएम की अनुपस्थिति से क्षेत्र में विकास कार्य रुके हुए हैं। आपदा संभावित क्षेत्र होने के कारण चकराता, त्यूणी और कालसी में प्रशासनिक तंत्र की मजबूती बेहद जरूरी है। लेकिन नेताओं की इस चुप्पी ने जनता के सामने एक कड़वा सच रखा है—वह यह कि सत्ता और प्रभाव का उपयोग केवल चुनावी जीत के लिए किया जा रहा है, न कि क्षेत्र की बेहतरी के लिए।

प्रीतम सिंह को विशेष रूप से आईना…।

प्रीतम सिंह, जिन्हें चकराता की जनता ने सात बार अपना प्रतिनिधि चुना, उनकी जिम्मेदारी सबसे बड़ी है। एक विधायक के रूप में, उनके पास सरकार पर दबाव बनाने, विधानसभा में सवाल उठाने और क्षेत्र की समस्याओं को राष्ट्रीय मंच तक ले जाने की शक्ति है। लेकिन उनकी चुप्पी न केवल निराशाजनक है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या वह वास्तव में जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हैं?प्रीतम सिंह को यह समझना होगा कि जनता का विश्वास एकतरफा नहीं होता। अगर वह इस गंभीर मुद्दे पर चुप रहते हैं, तो यह उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाएगा। मधु चौहान और रामशरण नौटियाल को भी यह समझने की जरूरत है कि स्थानीय नेतृत्व का मतलब केवल सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना नहीं, बल्कि जनता की आवाज को बुलंद करना है।

अब समय है जवाबदेही का…।

चकराता विधानसभा क्षेत्र की जनता को अब अपने नेताओं से सवाल पूछने का समय है। प्रीतम सिंह, मधु तोमर चौहान और रामशरण नौटियाल को यह समझना होगा कि जनता ने उन्हें केवल वोट नहीं दिया, बल्कि अपनी समस्याओं के समाधान की उम्मीद भी सौंपी है। त्यूणी, चकराता और कालसी तहसीलों में एसडीएम की नियुक्ति न होना केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि नेतृत्व की नाकामी का भी प्रतीक है।यह समय है कि ये नेता अपनी चुप्पी तोड़ें, इस मुद्दे को प्राथमिकता दें और सरकार पर दबाव बनाकर क्षेत्र की जनता को राहत दिलाएं। यदि वे ऐसा नहीं करते, तो जनता को भी यह सोचना होगा कि क्या ऐसे नेतृत्व को बार-बार चुनना उचित है। चकराता की जनता का हक है कि उनके नेता उनकी आवाज बनें, न कि केवल सत्ता के गलियारों में चुप्पी साधे रहें। यह लेख इन नेताओं को एक आईना दिखाने का प्रयास है—अब सवाल यह है कि क्या वे इस आईने में अपनी जिम्मेदारी देख पाएंगे?

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