राष्ट्रीय

हज़रतबल विवाद: कश्मीरी नेताओं की भारतद्रोही राजनीति उजागर….।

ब्यूरो रिपोर्ट, विक्रम सिंह।

श्रीनगर।

श्रीनगर स्थित ऐतिहासिक हज़रतबल दरगाह एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। दरगाह के जीर्णोद्धार कार्य के दौरान वहां लगे अशोक स्तंभ (अशोक की लाट) को तोड़ डाला गया। यह वही प्रतीक है जो भारत की संप्रभुता और संविधान का प्रतीक माना जाता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि यह “अशोक स्तंभ” वाला बोर्ड सालों से—2010 में फारूक अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री रहते हुए, 2015 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के कार्यकाल में, और फिर 2016 से 2018 तक महबूबा मुफ्ती के शासन में—बिना किसी आपत्ति के उसी परिसर में मौजूद रहा। 2022 तक किसी कश्मीरी नेता या संगठन ने इसे मुद्दा नहीं बनाया।

लेकिन आज जब दरगाह का जीर्णोद्धार शुरू हुआ तो कुछ स्थानीय नेताओं और संगठनों ने इसे “बुतपरस्ती” (मूर्तिपूजा) का नाम देकर तोड़फोड़ की। सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों तक चुप्पी साधने के बाद अचानक अब इस पर ऐतराज़ क्यों?

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता पर चोट है और यह दिखाती है कि कश्मीरी राजनीति किस हद तक भारत विरोध की मानसिकता में फंसी हुई है।

जनमानस का गुस्सा भी उभरकर सामने आ रहा है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह हरकत सिर्फ़ धार्मिक भावनाओं के नाम पर भारतद्रोह को वैध ठहराने की साज़िश है।

अगस्त 2019 की याद…..।

लोगों का कहना है कि जैसे अगस्त 2019 में धारा 370 हटाकर भारत सरकार ने निर्णायक कदम उठाया था, वैसे ही अब भी सख़्त कार्रवाई की ज़रूरत है। अन्यथा कश्मीर में ऐसे देशविरोधी तत्व बार-बार लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया का मज़ाक उड़ाते रहेंगे।

बड़ा सवाल: सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला?….

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने का आदेश दिया था। लेकिन इस घटना के बाद यह सवाल और गहरा हो गया है कि, क्या लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने से पहले भारत विरोधी ताक़तों पर कड़ा प्रहार नहीं होना चाहिए था?

हज़रतबल विवाद महज़ एक धार्मिक मसला नहीं है, बल्कि यह साफ़-साफ़ भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाली हरकत है, और अब पूरा देश पूछ रहा है कि क्या कश्मीर की राजनीति फिर से भारतद्रोह की ओर लौट रही है?

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