शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी और ममता सरकार पर तुष्टिकरण के आरोप।

ब्यूरों रिपोर्ट
पश्चिम बंगाल में हाल ही में पुणे की 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी ने एक बड़े सियासी विवाद को जन्म दिया है। कोलकाता पुलिस ने शर्मिष्ठा को हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार किया, जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य नेताओं ने ममता बनर्जी सरकार पर तुष्टिकरण की राजनीति और सनातन संस्कृति के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने विशेष रूप से यह दावा किया है कि ममता सरकार केवल तभी कार्रवाई करती है, जब मामला किसी विशेष समुदाय से जुड़ा हो, जबकि सनातन संस्कृति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर कोई कदम नहीं उठाया जाता।
शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी: तथ्य शर्मिष्ठा पनोली, जो पुणे के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल में बीबीए-एलएलबी की चौथे वर्ष की छात्रा हैं, को कोलकाता पुलिस ने 30 मई 2025 को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में एक विशेष समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी। इस वीडियो में शर्मिष्ठा ने बॉलीवुड हस्तियों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। वीडियो के वायरल होने के बाद, कोलकाता के गार्डनरीच थाने में 15 मई 2024 को शिकायत दर्ज की गई, जिसमें उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने और शांति भंग करने का आरोप लगाया गया।शर्मिष्ठा ने बाद में वीडियो हटा लिया और सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा, “मैं भविष्य में अपने पोस्ट में सावधानी बरतूंगी। कृपया मेरी माफी स्वीकार करें।” इसके बावजूद, कोलकाता पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट प्राप्त किया और उन्हें गुरुग्राम से हिरासत में लिया। कोर्ट ने उन्हें 13 जून 2025 तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
सुवेंदु अधिकारी के आरोप सुवेंदु अधिकारी ने शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी को तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने दावा किया कि ममता बनर्जी सरकार केवल तभी सक्रिय होती है, जब मामला किसी विशेष समुदाय से जुड़ा हो। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा और सायोनी घोष के उदाहरण दिए, जिनके खिलाफ मां काली और भगवान शिव पर कथित अपमानजनक टिप्पणियों के लिए FIR दर्ज हुई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके अतिरिक्त, उन्होंने टीएमसी नेता फिरहाद हकीम का उदाहरण दिया, जिन्होंने कथित तौर पर कहा था कि जो लोग इस्लाम में पैदा नहीं हुए, वे बदकिस्मत हैं, और उनके खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।अधिकारी ने यह भी आरोप लगाया कि ममता सरकार सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियों को नजरअंदाज करती है, जैसे ‘जय श्री राम’ को अपमानजनक बताना या महाकुंभ को ‘मृत्यु कुंभ’ कहना, जबकि अन्य समुदायों के खिलाफ टिप्पणियों पर तुरंत कार्रवाई की जाती है।
ममता सरकार और कोलकाता पुलिस का पक्ष.. कोलकाता पुलिस ने शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी को देशभक्ति के खिलाफ कार्रवाई के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह “नफरत फैलाने वाली सामग्री” पोस्ट करने के कारण हुई। पुलिस के अनुसार, शर्मिष्ठा के वीडियो ने समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा दिया, जो भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 35 के तहत दंडनीय अपराध है। पुलिस ने यह भी दावा किया कि शर्मिष्ठा को कई बार कानूनी नोटिस भेजे गए, लेकिन उनकी अनुपस्थिति के कारण कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट लिया गया।ममता बनर्जी सरकार ने इस मामले में सीधे तौर पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन टीएमसी समर्थकों का कहना है कि पुलिस ने कानून के दायरे में कार्रवाई की है। कुछ लोगों ने यह भी तर्क दिया कि शर्मिष्ठा की टिप्पणियां सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकती थीं, जिसके कारण त्वरित कार्रवाई जरूरी थी।
तथ्य और तर्क: क्या कार्रवाई में पक्षपात है?
शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी की गति और प्रक्रिया:
शर्मिष्ठा के मामले में कोलकाता पुलिस की त्वरित कार्रवाई उल्लेखनीय है। उनके वीडियो को हटाने और माफी मांगने के बावजूद, पुलिस ने 1500 किलोमीटर दूर गुरुग्राम जाकर उन्हें गिरफ्तार किया। यह सवाल उठता है कि क्या इतनी त्वरित कार्रवाई हर मामले में होती है, खासकर जब सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियां की जाती हैं। उदाहरण के लिए, महुआ मोइत्रा द्वारा मां काली पर की गई टिप्पणी पर FIR दर्ज होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। यह असमानता पक्षपात के आरोपों को बल देती है।
सनातन धर्म पर टिप्पणियों पर कार्रवाई का अभाव:
सुवेंदु अधिकारी ने जिन मामलों का जिक्र किया, जैसे महुआ मोइत्रा, सायोनी घोष, और फिरहाद हकीम की टिप्पणियां, उनमें कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह तथ्य यह सवाल उठाता है कि क्या ममता सरकार की प्राथमिकताएं एक विशेष समुदाय को प्राथमिकता देती हैं, जैसा कि भाजपा और अन्य नेता दावा करते हैं। पवन कल्याण और कंगना रनौत जैसे नेताओं ने भी इस दोहरे मापदंड पर सवाल उठाए हैं, जिसमें सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियों को नजरअंदाज किया जाता है।
राजनीतिक मंशा और वोट बैंक:
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक एक विशेष समुदाय से आता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी इस वोट बैंक को खुश करने का प्रयास हो सकता है, खासकर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले। यह तर्क सुवेंदु अधिकारी और भाजपा के दावों को समर्थन देता है कि सरकार की कार्रवाई तुष्टिकरण से प्रेरित है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल:
शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठाए हैं। कंगना रनौत और कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे पुलिस शक्ति का दुरुपयोग बताया। शर्मिष्ठा ने माफी मांगकर और वीडियो हटाकर अपनी गलती सुधारने की कोशिश की थी, फिर भी उनकी गिरफ्तारी को कई लोगों ने अनुचित ठहराया। यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस की कार्रवाई जरूरत से ज्यादा कठोर थी।
कानूनी प्रक्रिया की वैधता:
कोलकाता पुलिस ने दावा किया कि शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई, जिसमें कोर्ट से वारंट लिया गया। हालांकि, यह तथ्य कि उन्होंने माफी मांगी थी और कोई सांप्रदायिक अशांति नहीं हुई थी, यह सवाल उठाता है कि क्या कार्रवाई अनुपात में थी।
शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी और सुवेंदु अधिकारी के आरोपों ने पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता के दोहरे मापदंड पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। तथ्य यह दर्शाते हैं कि शर्मिष्ठा के मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की, जबकि सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियों पर समान सक्रियता नहीं दिखाई गई। यह असमानता तुष्टिकरण के आरोपों को बल देती है। हालांकि, पुलिस का दावा है कि कार्रवाई कानूनी थी और नफरत फैलाने वाली सामग्री के खिलाफ थी।
इस मामले में दो तर्क सामने आते हैं: एक, कि ममता सरकार वोट बैंक की राजनीति के तहत चुनिंदा कार्रवाई कर रही है, जैसा कि सुवेंदु अधिकारी और भाजपा दावा करते हैं। दूसरा, कि पुलिस ने कानूनी दायित्वों का पालन किया, क्योंकि शर्मिष्ठा की टिप्पणियां सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकती थीं। सच्चाई शायद इन दोनों के बीच कहीं न कहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि पश्चिम बंगाल में धार्मिक संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल चुनौती है। इस मामले ने न केवल ममता सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि देश में धर्मनिरपेक्षता और कानूनी प्रक्रिया की एकरूपता पर भी बहस छेड़ दी है।