सेलाकुई का सच, खसरा 3288 पर अवैध कब्जों का साम्राज्य, प्रशासन मौन क्यों?…..

ब्यूरों रिपोर्ट, देहरादून।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही सेलाकुई इलाके ने अवैध कब्जाधारियों को अपनी ओर खूब आकर्षित किया है। वजह साफ है, यहाँ सिडकुल की स्थापना और उसके इर्द-गिर्द तेजी से बढ़ता उद्योगिकरण। सरकारी जमीनों पर कब्जा कर करोड़ों की संपत्ति खड़ी करने वालों के लिए यह जगह “स्वर्णभूमि” साबित हुई है।
100 बीघा पर उगा “अवैध मोहल्ला”……
देहरादून से लगभग 25 किलोमीटर दूर शंकरपुर-हुकुमतपुर क्षेत्र में राज्य मानसिक स्वास्थ्य केंद्र से सटी ग्राम समाज की 100 बीघा भूमि (खसरा नं. 3288) पर आज एक पूरा “गैरकानूनी मोहल्ला” बस चुका है। यह जमीन सार्वजनिक उपयोग की थी, लेकिन सालों से दबंग और रसूखदारों ने इस पर कब्जा कर मकान, दुकानें और स्थायी ढाँचे खड़े कर दिए।
इस जमीन पर कानूनी रूप से सिर्फ दो चीजें मान्य हैं।
1. लॉ कॉलेज
2. गौशाला
बाकी सब कुछ अवैध है।
प्रशासन की आँखों पर पट्टी क्यों?…..
हैरानी की बात यह है कि डीएम से लेकर एसडीएम, तहसीलदार और पटवारी हर कोई इस रास्ते से रोज़ गुजरता है। लेकिन अवैध कब्जों पर कार्रवाई की जगह सबकी नजरें चुपचाप फेर ली जाती हैं। तहसील प्रशासन विकासनगर को शिकायतें मिलती रहती हैं, लेकिन कार्रवाई सिर्फ “दिखावे” तक सिमटकर रह जाती है। और जब कार्रवाई होती भी है तो कब्जाधारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज नहीं किए जाते, जिससे वे और ज्यादा हौसले बुलंद कर लेते हैं।
ईदगाह और राजनीति का खेल…..।
सूत्रों के अनुसार, इस सरकारी जमीन के बड़े हिस्से पर ईदगाह के नाम पर भी कब्जा किया गया है। यह कब्जा एक पूर्व जिला पंचायत सदस्य के संरक्षण में हुआ, जिस पर कांवड़ियों पर हमले का आरोप भी है। दिलचस्प यह है कि यही व्यक्ति भाजपा और कांग्रेस—दोनों ही दलों का चहेता बताया जाता है।
हाल ही के जिला पंचायत चुनाव में भी यह व्यक्ति भाजपा खेमे के नजदीक रहा और वोट दिलाने के एवज में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे हटाने की शर्त तक सरकार के सामने रखी।
जनता का सवाल, सरकार किसके दबाव में?…..
क्या राज्य सरकार और जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है कि ग्राम समाज की जमीन पर अवैध कब्जा है?
क्या राजनैतिक लाभ के लिए कानून को ताक पर रख दिया गया है?
क्या सरकार के लिए वोट बैंक की राजनीति, जनता की जमीन और न्याय से ज्यादा महत्वपूर्ण है?
अवैध कब्जों पर चुप्पी – सरकार की मिलीभगत……।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों की सरकारों में इस जमीन पर कब्जाधारियों की बल्ले-बल्ले रही है। सवाल उठता है कि क्या सरकार की चुप्पी, सत्ता और दबंगों के गठजोड़ का सबूत नहीं है?
सेलाकुई का खसरा नं. 3288 आज प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक मिलीभगत की जीती-जागती तस्वीर है। अगर राज्य सरकार व जिला प्रशासन अब भी चुप रहा, तो यह न सिर्फ जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात होगा बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि उत्तराखंड में कानून सिर्फ कमजोरों के लिए है, दबंगों और राजनैतिक चहेतों के लिए नहीं।
अब देखना यह है कि सरकार और जिला प्रशासन जनता के दबाव में इस अवैध साम्राज्य को ढहाते हैं या फिर वोट बैंक की राजनीति के तले इसे और पनपने देते हैं।