आरक्षण विवाद पर कांग्रेस को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, अगली सुनवाई 11 अगस्त को…..।

ब्यूरों रिपोर्ट….।
देहरादून/नैनीताल।
उत्तराखंड की जिला पंचायत राजनीति एक बार फिर आरक्षण विवाद के कारण गरमा गई है। कांग्रेस ने हाल ही में जारी आरक्षण सूची को चुनौती देते हुए नैनीताल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर बुधवार को पार्टी को वहां से फिलहाल कोई राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 11 अगस्त, सोमवार की तिथि तय की है। संयोग से इसी दिन जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की आखिरी तारीख भी है।
नामांकन की तारीख भी उसी दिन, कांग्रेस असमंजस में,
क्या है मामला?…..
निर्वाचन आयोग ने 5 अगस्त तक जिला पंचायत अध्यक्षों के आरक्षण को लेकर आपत्तियां मांगी थीं। 6 अगस्त को आपत्तियों का निस्तारण कर अंतिम आरक्षण सूची जारी कर दी गई, और 7 अगस्त को आयोग ने नामांकन, मतदान और मतगणना को लेकर विस्तृत कार्यक्रम घोषित कर दिया। इसके मुताबिक 11 अगस्त को नामांकन और 14 अगस्त को मतदान तथा मतगणना होनी है।
कांग्रेस ने इस प्रक्रिया को “जल्दबाज़ी में लिया गया और असंवैधानिक फैसला” बताया है और इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। पार्टी की ओर से दलील दी गई कि इतनी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में पर्याप्त समय और पारदर्शिता नहीं दी गई।
कांग्रेस को नहीं मिली अंतरिम राहत…..।
कांग्रेस को उम्मीद थी कि हाईकोर्ट आरक्षण सूची पर रोक लगाकर प्रक्रिया को स्थगित करेगा, लेकिन कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए 11 अगस्त की अगली तारीख तय कर दी। यह वही दिन है जब नामांकन की प्रक्रिया पूरी होनी है, ऐसे में कांग्रेस के सामने दोराहा खड़ा हो गया है, क्या कोर्ट के आदेश का इंतजार किया जाए या आरक्षित सीट के अनुसार महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाए?
स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रिया…..।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस पूरे मामले पर कहा, “राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग ने एकतरफा निर्णय लेकर लोकतंत्र के मूल्यों की अनदेखी की है। हमारी पार्टी इस लड़ाई को अदालत से लेकर जनता तक लड़ेगी।”
वहीं पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रीतम सिंह ने सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा, “अगर सरकार में साहस था, तो प्रमुखों के साथ ही अध्यक्ष पद का आरक्षण घोषित करती। यह चुनावी जोड़तोड़ है, जो लोकतंत्र की हत्या के समान है।”
दूसरी ओर, भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कांग्रेस की याचिका पर तंज कसते हुए कहा, “आरक्षण पर आपत्ति तब उठाई जा रही है जब महिलाओं को सशक्त किया जा रहा है। यह वही कांग्रेस है जो महिलाओं के 50% आरक्षण का विरोध कर रही है।”
क्या कहना राजनीतिक विश्लेषकों का…..।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनावी आरक्षण केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि रणनीतिक फैसला भी है। उत्तराखंड में महिला वोटर की संख्या लगातार बढ़ रही है, और भाजपा इसे ध्यान में रखते हुए महिला नेतृत्व को आगे लाकर “महिला हितैषी पार्टी” की छवि मजबूत करना चाहती है।
वरिष्ठ वकील अखिलेश रावत के अनुसार, “आरक्षण की समयसीमा और प्रक्रिया से यह संदेश गया है कि सरकार सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने की कोशिश में है, लेकिन यह कांग्रेस के लिए भी संगठनात्मक परीक्षा है कि वह तात्कालिक झटकों से कैसे निपटती है।”
अब सारी नजरें 11 अगस्त पर टिकी हैं। कांग्रेस अदालत से राहत की आस लगाए है, जबकि भाजपा इस पूरे विवाद को “राजनीतिक नौटंकी” बता रही है। इस बीच जनता यह समझने की कोशिश कर रही है कि क्या आरक्षण की राजनीति जनहित में है या सिर्फ सत्ता की गणित?