खूंखार आतंकी यासीन मलिक का एफिडेविट – कोर्ट में लगाए गंभीर आरोप, क्या है पूरा मामला?…..

ब्यूरों रिपोर्ट,
दिल्ली हाईकोर्ट में आतंकवादी फंडिंग मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहे यासीन मलिक ने एक एफिडेविट दायर कर हलचल मचा दी है। मलिक ने खुद पर लगे आरोपों से पलटवार करते हुए केंद्र सरकार और खुफ़िया एजेंसियों पर गंभीर दावे किए हैं।
क्या कहा यासीन मलिक ने?…….
मलिक का कहना है कि उन्होंने 1994 में हथियार छोड़ दिए और शांति प्रक्रिया का हिस्सा बने।
उनका दावा है कि 2006 में पाकिस्तान में हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात उन्होंने अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के कहने पर की थी।
इस मुलाक़ात की जानकारी उन्होंने लौटकर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को दी थी।
मलिक के मुताबिक, मनमोहन सिंह ने उनके “धैर्य और प्रयास” की सराहना भी की थी।
NIA क्या कह रही है?……
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने मलिक की उम्रकैद की सज़ा को कम मानते हुए फांसी की सज़ा (डेथ पेनल्टी) की मांग की है।
एजेंसी का कहना है कि मलिक ने विदेशी फंडिंग से कश्मीर में हिंसा फैलाने और निर्दोष लोगों की हत्या कराने का काम किया।
NIA के अनुसार, यह मामला “रेयर ऑफ द रेयरेस्ट” है और देश के खिलाफ युद्ध जैसा अपराध है।
कानूनी पेच……
मलिक का एफिडेविट उनके बचाव का हिस्सा है, लेकिन अदालत में यह तभी वजनदार साबित होगा जब उनके दावों के ठोस सबूत सामने आएं।
अदालत को यह तय करना होगा कि क्या मलिक का अपराध इतना गंभीर है कि उन्हें फांसी की सज़ा दी जाए, या फिर उम्रकैद ही बरकरार रहे।
जनता के लिए सवाल….।
क्या यासीन मलिक सच में शांति वार्ता का हिस्सा थे या फिर आतंक के नेटवर्क को मजबूत कर रहे थे?
क्या उनके दावे केवल सज़ा से बचने का हथकंडा हैं?
और क्या अदालत “रेयर ऑफ द रेयरेस्ट” मानते हुए उन्हें फांसी की सज़ा सुनाएगी?
यह मामला अब सिर्फ एक आतंकी की सज़ा का नहीं, बल्कि कश्मीर की राजनीति, भारत की सुरक्षा और न्यायपालिका के बड़े फैसले का सवाल बन गया है।