मनरेगा से VB-G RAM G तक…….।

ब्यूरों रिपोर्ट
125 दिन का रोजगार, फंडिंग में बड़ा बदलाव और ‘एक परिवार’ वाली सियासत।
लोकसभा से हाल ही में पास हुआ VB-G RAM G (जी राम जी) बिल सिर्फ़ मनरेगा का नाम बदलने या रोजगार के दिन 100 से 125 करने का मामला नहीं है।
यह बिल ग्रामीण रोजगार व्यवस्था की आत्मा, राज्यों की भूमिका और केंद्र-राज्य संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करता है।
इसी के साथ सरकार द्वारा उठाया गया सवाल
“एक ही परिवार के नाम पर 52 योजनाएँ”
इस पूरे बदलाव की राजनीतिक पृष्ठभूमि बन गया है।
1- मनरेगा बनाम जी राम जी: असली फर्क कहाँ है?…..
रोजगार के दिन।
मनरेगा: 100 दिन की कानूनी गारंटी।
VB-G RAM G: 125 दिन की गारंटी (कागज़ पर बड़ा फायदा)
लेकिन सवाल दिन बढ़ने का नहीं,
पैसे और नियंत्रण का है।
2- फंडिंग पैटर्न: यहीं से विवाद शुरू होता है।
पुराना मनरेगा (केन्द्रीय मॉडल)
अकुशल मजदूरी: 100% केंद्र।
सामग्री: 75% केंद्र – 25% राज्य।
प्रशासनिक खर्च: ज़्यादातर केंद्र सरकार।
कुल मिलाकर: 90–95% बोझ केंद्र सरकार पर था।
इसी वजह से:
राज्यों पर दबाव कम था,
संकट (सूखा, बाढ़, पलायन) में काम बढ़ाया जा सकता था।
योजना डिमांड-ड्रिवन थी (काम माँगो, काम दो)
नया VB-G RAM G (फिक्स्ड शेयरिंग मॉडल)
अब योजना बनी Centrally Sponsored Scheme….
सामान्य राज्य: 60% केंद्र – 40% राज्य।
उत्तर-पूर्वी व हिमालयी राज्य (उत्तराखंड, हिमाचल, J&K): 90:10
बिना विधानसभा वाले केन्द्रशासित: 100% केंद्र।
अब मजदूरी, सामग्री, प्रशासन, सबमें राज्य को हिस्सा देना होगा।
3- सरकार का तर्क क्या है?……….
सरकार कहती है।
फिक्स्ड फंडिंग से जवाबदेही बढ़ेगी।
राज्य खुद पैसा लगाएंगे तो भ्रष्टाचार घटेगा।
योजनाएँ “परिवार नहीं, राष्ट्र” के नाम पर हों।
यानी,
नाम बदला + ढांचा बदला = नया सिस्टम।
4- विपक्ष और विशेषज्ञ क्यों नाराज़ हैं?………
विपक्ष का कहना है कि,
125 दिन का लाभ तभी मिलेगा जब राज्य पैसा दें।
बिहार, तमिलनाडु, झारखंड जैसे फिस्कली कमजोर राज्य, संकट के समय काम घटा सकते हैं।
योजना अब मांग आधारित नहीं, बजट आधारित हो जाएगी।
मनरेगा का सबसे बड़ा हथियार,
कानूनी रोजगार अधिकार कमजोर पड़ेगा।
इसलिए विपक्ष इसे कह रहा है
“नाम बदला गया, लेकिन गरीब पर बोझ बढ़ा” है।
5- ‘एक परिवार’ बनाम ‘गरीब का अधिकार’…….।
यहीं से 52 योजनाओं वाली बहस जुड़ती है।
सरकार का नैरेटिव,
पिछली सरकारों ने योजनाओं को
नेहरू-गांधी परिवार की स्मृति से बाँध दिया था
अब उस संस्कृति से मुक्ति मिल रही है।
विपक्ष का जवाब,
गरीब को नाम से नहीं, काम और मजदूरी से मतलब है।
अगर व्यक्ति पूजा गलत थी,
तो अधिकार कमजोर क्यों किए जा रहे हैं?
यानी लड़ाई है,
स्मृति की राजनीति बनाम आजीविका की राजनीति की।
6- उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिए क्या मायने?…
90:10 मॉडल से तत्काल झटका कम
लेकिन,
भविष्य में बजट सीमा,काम की प्राथमिकता तय करने में केंद्र का दबाव तथा पलायन रोकने की क्षमता पर असर।
पहाड़ में मनरेगा सिर्फ़ रोजगार नहीं,
गांव को ज़िंदा रखने का साधन है।
लाभ बड़ा, जोखिम भी बड़ा……..।
VB-G RAM G बिल में,
125 दिन रोजगार का वादा…..
लेकिन फंडिंग और नियंत्रण में बड़ा बदलाव।
सरकार इसे सुधार कह रही है,
विपक्ष इसे केंद्रीकरण और अधिकारों की कटौती।
अंत में फैसला संसद नहीं करेगी,
ग्रामीण मजदूर करेगा—
जिसके हाथ में काम मिलेगा या नहीं।