प्रथम गांव माणा में 25 अक्टूबर से होगा ‘देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव।

ब्यूरों रिपोर्ट
चमोली। भारत के प्रथम गाँव माणा में 25 से 26 अक्टूबर तक “देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव 2025” का आयोजन किया जाएगा। यह महोत्सव भारतीय सेना और उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी पहल है।
लोक संस्कृति, पर्यटन और सेना के साहस का दिखेगा अनूठा संगम।
“संस्कृति से समृद्धि” की थीम पर आधारित यह दो दिवसीय आयोजन सीमांत क्षेत्रों में संस्कृति, पर्यटन और स्थानीय आजीविका को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। हिमालय की गोद में बसे माणा गाँव में यह पर्व साहस, परंपरा और लोकसंस्कृति के अद्भुत संगम का प्रतीक बनेगा।
महोत्सव का उद्देश्य यह संदेश देना है कि सीमांत गाँव राष्ट्र के विकास और संस्कृति की प्रथम पंक्ति हैं। यह आयोजन हमारे सैनिकों के साहस और उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत के बीच एक सशक्त सेतु का कार्य करेगा।
दो दिवसीय महोत्सव के प्रमुख आकर्षण……..।
महोत्सव में उत्तराखण्ड की लोक परंपराओं, संगीत और जीवन मूल्यों की झलक देखने को मिलेगी।
‘रिद्म्स ऑफ़ द माउंटेन्स’ में संकल्प खेतवाल, वूमनिया बैंड, धारी देवी बैंड, साधो बैंड, आईआईटी रुड़की बैंड और आर्मी बैंड अपनी प्रस्तुतियाँ देंगे।
‘लोक की गूंज’ में पांडव नृत्य, झूमैला और छांचरी जैसे पारंपरिक गढ़वाली नृत्य स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाएंगे।
‘ट्रेल्स एंड स्टार्स’ के तहत भीम पुल, व्यास गुफा और गणेश गुफा तक हेरिटेज वॉक, अलकनंदा तट पर गंगा आरती और हिमालयी आकाश के नीचे तारामंडल अवलोकन (स्टारगेजिंग) जैसे कार्यक्रम होंगे।
इसके अलावा, ‘पहाड़ी हाट’ में स्थानीय कारीगरों, महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों के उत्पाद- हस्तशिल्प, ऊनी वस्त्र, जैविक उत्पाद और पारंपरिक व्यंजन प्रदर्शित किए जाएंगे।
‘वीर भूमि अनुभव’ में “नो योर आर्मी” जोन के माध्यम से आगंतुक भारतीय सेना के उपकरणों की प्रदर्शनी देख सकेंगे और सैनिकों से संवाद भी कर सकेंगे।
‘सामुदायिक सहभागिता’ के अंतर्गत ग्रामीण खेल, प्रतियोगिताएँ और सांस्कृतिक कार्यशालाएँ आयोजित की जाएंगी।
भारतीय सेना का संदेश……।
भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि,
“भारतीय सेना हमेशा हिमालय के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही है। यह पर्व उसी अटूट रिश्ते का उत्सव है, जहाँ सीमाओं के रक्षक और संस्कृति के संरक्षक एक साथ आते हैं। माणा साहस, समुदाय और निरंतरता का प्रतीक है।”
यह आयोजन न केवल सीमांत गाँवों को नई पहचान और रोजगार के अवसर प्रदान करेगा, बल्कि क्षेत्र के समग्र विकास और सीमावर्ती पर्यटन को भी नई दिशा देगा।
अनुमान है कि इस आयोजन में 10,000 से अधिक आगंतुक शामिल होंगे और डिजिटल माध्यमों पर लाखों लोग इस सांस्कृतिक उत्सव के साक्षी बनेंगे।