न्याय का तराजू और दो मापदंड: एक गहरी पड़ताल…।

ब्यूरों रिपोर्ट,
भारत की अदालतों से आम नागरिक यह अपेक्षा रखता है कि न्याय धर्म, जाति या समुदाय नहीं देखता, केवल सत्य और समानता देखता है। लेकिन हाल के कुछ फैसलों ने यह सवाल उठाया है कि क्या यह संतुलन वास्तव में कायम है?
मेहरौली की दरगाहों का संरक्षण आदेश……..।
19 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मेहरौली पुरातात्विक पार्क में स्थित आशिक़ अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद के चिल्लागाह की मरम्मत और संरक्षण का आदेश दिया। यह आदेश मुस्लिम समुदाय की याचिका पर आया, और अदालत ने इसे ऐतिहासिक महत्व का स्थल बताते हुए ASI को मरम्मत का निर्देश दिया।
यह निर्णय उस समय आया जब याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा संभावित ध्वस्तीकरण को लेकर चिंता जताई थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच—जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन ने इस याचिका को गंभीरता से लिया और तत्काल राहत दी।
खजुराहो का मामला- भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा…..।
इसके उलट, खजुराहो के विश्वविख्यात मंदिर में भगवान विष्णु की एक खंडित प्रतिमा को लेकर दायर याचिका को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से नहीं लिया। याचिकाकर्ता ने यह निवेदन किया था कि प्रतिमा का संरक्षण और मरम्मत की अनुमति दी जाए, क्योंकि यह भी एक राष्ट्रीय धरोहर और करोड़ों हिंदुओं की आस्था से जुड़ा विषय है।
लेकिन अदालत ने इस याचिका को “तुच्छ और निरर्थक” कहकर खारिज कर दिया। यह वही सर्वोच्च न्यायालय है जिसने मेहरौली की दरगाहों की मरम्मत के लिए स्वयं पहल की थी।
यहीं उठता है बड़ा प्रश्न…….।
जब किसी एक धर्मस्थल के संरक्षण को “संविधानिक जिम्मेदारी” माना जाता है और दूसरे धर्म के प्रतीक की मरम्मत को “तुच्छ याचिका” कहा जाता है, तो जनता स्वाभाविक रूप से प्रश्न करती है कि क्या न्याय का तराजू झुक रहा है?…
न्याय की गरिमा बनाम जनता का विश्वास………।
न्यायपालिका की आलोचना उसका अपमान नहीं, बल्कि उसकी पारदर्शिता के लिए आवश्यक है। जब लोग न्याय के निर्णयों में असमानता देखते हैं, तो उनकी आवाज़ लोकतंत्र का हिस्सा होती है।
न्याय की गरिमा तभी बनी रह सकती है जब उसका तराजू सबके लिए समान हो, चाहे वह दरगाह हो या मंदिर।
भारत का संविधान “समानता के अधिकार” की बात करता है। अगर अदालतें किसी धार्मिक स्थल को इतिहास का हिस्सा मानकर संरक्षण देती हैं, तो उन्हें दूसरे धर्म के स्थलों के प्रति भी वही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए, यही जनता के विश्वास की नींव है।