राष्ट्रीय

विजयदशमी से शताब्दी तक: एक संगठन से राष्ट्र की धड़कन बनने की कहानी……।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ @100

ब्यूरों रिपोर्ट,

1925 की विजयदशमी, नागपुर की धरती पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने एक छोटे-से बीज को रोपा। उनका सपना था। भारत को अपनी स्वयं की संस्कृति, गौरव और परंपरा के आधार पर खड़ा करना। वही बीज आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के रूप में भारतीय जीवन का वटवृक्ष बन चुका है।

इस विजयदशमी पर संघ अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है। यह केवल एक शताब्दी का पड़ाव नहीं बल्कि उस अविरल यात्रा का स्मरण है जिसने राजनीति, समाज, शिक्षा, संस्कृति और सेवा हर क्षेत्र को गहराई से प्रभावित किया।

मोदी-शाह और संघ, शताब्दी वर्ष की गूंज…….

शताब्दी वर्ष की शुरुआत से ही सत्ता और संघ के रिश्तों में गहराई साफ़ दिख रही है।

30 मार्च: PM मोदी नागपुर स्थित स्मृति मंदिर पहुँचकर हेडगेवार और गुरु गोलवलकर को श्रद्धांजलि देते हैं, संघ को भारतीय संस्कृति का वटवृक्ष बताते हैं।

29 अप्रैल: सरसंघचालक मोहन भागवत प्रधानमंत्री आवास पहुँचते हैं। अगले ही दिन सरकार जातीय जनगणना का बड़ा ऐलान करती है।

25 जून: आपातकाल की 50वीं बरसी पर अमित शाह खुद को संघ का बाल स्वयंसेवक बताते हैं।

15 अगस्त: लाल किले की प्राचीर से मोदी संघ को दुनिया का सबसे बड़ा NGO कहते हुए इसके 100 वर्षों को राष्ट्र सेवा का स्वर्णिम अध्याय बताते हैं।

22 अगस्त: अमित शाह कोच्चि में दोहराते हैं—”मैं आज भी संघ का स्वयंसेवक हूँ।”

11 सितम्बर: भागवत के जन्मदिवस पर देशभर के अखबारों में PM मोदी का लेख छपता है।

28 सितम्बर: मन की बात में मोदी स्वयंसेवकों को शुभकामनाएँ देते हैं, आपदा राहत में उनकी भूमिका का ज़िक्र करते हैं।

यह घटनाक्रम दिखाता है कि भाजपा नेतृत्व ने नड्डा के विवादित बयान की भरपाई के लिए संघ के साथ रिश्ते को और प्रगाढ़ किया है।

सौ वर्षों की उपलब्धियाँ: सेवा से राजनीति तक……।

संघ की यात्रा केवल शाखाओं तक सीमित नहीं रही।

संगठन और शिक्षा: सरस्वती शिशु मंदिर से लेकर हजारों विद्यालय, जहाँ भारतीय मूल्य और राष्ट्रभक्ति का संस्कार दिया जाता है।

सेवा कार्य: भूकंप, बाढ़, महामारी हर आपदा में सबसे पहले स्वयंसेवक मैदान में, सेवा भारती के जरिए लाखों परिवारों तक सहायता।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण: उत्सवों, पर्व-त्योहारों और भारतीय परंपरा को नई ऊर्जा देना।

वैचारिक विस्तार: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), भारतीय मजदूर संघ (BMS), विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे संगठन, जो अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी शक्ति बने।

राजनीतिक धारा: जनसंघ से भाजपा तक का सफर, और आज केंद्र व राज्यों में सत्ता का नेतृत्व।

चुनौतियाँ और प्रतिबंध………।

संघ की राह कभी आसान नहीं रही।

आज़ादी के बाद महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया गया।

आपातकाल (1975) के दौरान संघ पर फिर बैन लगा, हजारों स्वयंसेवक जेलों में डाले गए।
लेकिन हर बार संघ और मज़बूत होकर लौटा।

वैश्विक विस्तार……..।

आज संघ केवल भारत तक सीमित नहीं है।

दुनिया के 50 से अधिक देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) सक्रिय है।

प्रवासी भारतीय समुदाय में सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने का काम यही कर रहा है।

शताब्दी का संदेश…….।

100 वर्षों के इस सफर के बाद संघ अब केवल संगठन नहीं बल्कि भारत की आत्मा का हिस्सा है।

सत्ता में भाजपा की सरकारें संघ की वैचारिक दिशा को नीतियों में ढाल रही हैं।

समाज में स्वयंसेवक शिक्षा, सेवा और संस्कार से राष्ट्र की चेतना को मजबूत कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघ भारतीय संस्कृति का राजदूत बन चुका है।

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि जब भाजपा और संघ की तालमेल में लय बैठती है, तो राजनीतिक परिदृश्य बदल जाता है।

विजयदशमी 2025……।

जब नागपुर में हज़ारों स्वयंसेवक शताब्दी विजयदशमी समारोह में पंक्तिबद्ध खड़े होंगे, तब यह दृश्य केवल एक संगठन का शताब्दी पर्व नहीं होगा। यह उस यात्रा का उत्सव होगा जिसने 1925 के एक छोटे बीज को भारत राष्ट्र की धड़कन बना दिया।

संघ का शताब्दी वर्ष यही संदेश देता है कि
“हमारे लिए सेवा ही साधना है, और राष्ट्र ही परम ध्येय।”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button