विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों में शामिल हुए आचार्य बालकृष्ण……..।

ब्यूरों रिपोर्ट
देहरादून, 28 सितम्बर।
कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और रिसर्च जर्नल्स प्रकाशित करने वाली प्रतिष्ठित कंपनी एल्सेवियर ने आचार्य बालकृष्ण को विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया है। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत कार्यों का सम्मान है, बल्कि भारतीय योग और आयुर्वेद की प्राचीन वैज्ञानिक परंपरा की वैश्विक मान्यता भी है।
आचार्य बालकृष्ण को कई लोग केवल इसलिए मानते है कि वो योगगुरु बाबा रामदेव के सहयोगी हैं, किंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो उनका योगदान अद्वितीय है। उन्होंने अब तक 300 से अधिक शोध-पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित किए हैं। यही नहीं, वे 120 पुस्तकों के लेखक हैं और आयुर्वेदिक वनस्पतियों के संरक्षण में भी निरंतर काम कर रहे हैं।
कोरोना काल में साबित हुआ महत्व……..।
कोविड-19 महामारी के दौरान पूरी दुनिया ने देखा कि आयुर्वेद और योग से जुड़ी भारतीय परंपराएं कितनी प्रासंगिक हैं। जिस देश में मेहमान के घर आने पर हाथ-पाँव धोकर प्रवेश करने की परंपरा रही, वही बातें महामारी के दौरान आधुनिक चिकित्सा परामर्श में दोहराई गईं। “नमस्ते” जैसे अभिवादन को भी विश्व ने बिना छुए अपनाया।
संरक्षण का बड़ा अभियान…….।
आचार्य बालकृष्ण ने न केवल प्राचीन आयुर्वेदिक पांडुलिपियों को सुरक्षित किया है, बल्कि ‘वर्ल्ड हर्बल इनसाइक्लोपीडिया’ के माध्यम से 60,000 से अधिक औषधीय पौधों की प्रजातियों का संकलन किया है। वे लुप्त हो रही कई प्रजातियों को संरक्षित करने में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
आलोचनाओं के बावजूद उपलब्धि……..।
पिछले वर्षों में आयुर्वेद और योग की आलोचना करने वाले वर्ग भी सामने आए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य संस्थानों के साथ कई विवादों के बावजूद आचार्य बालकृष्ण का वैज्ञानिक और शोधपरक कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता पा रहा है।
गौरव का विषय………।
यह उपलब्धि भारत और भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए गर्व का विषय है। आज जब स्टैनफोर्ड और एल्सेवियर जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ आचार्य बालकृष्ण को विश्व के अग्रणी वैज्ञानिकों में स्थान देती हैं, तो यह प्रमाण है कि पुरातन भारत की वैज्ञानिक व्यवस्थाएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली और प्रासंगिक हैं।