उत्तराखंड

संसद से जनजातीय दर्जे तक: धर्म देव शास्त्री का संघर्ष……।

ब्यूरों रिपोर्ट

देहरादून।

जौनसार-बावर के जौनसारी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिलाने की कहानी संसद से लेकर आयोग और सरकार की अधिसूचना तक फैली हुई है। इस संघर्ष में समाजसेवी पंडित धर्मदेव शास्त्री की भूमिका सबसे अहम रही।

1956 की संसदीय बहस…..।

13 सितंबर 1956 को संसद में जौनसारी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर बहस हुई। इस दौरान सांसद जसपत राय कपूर ने चकराता क्षेत्र में धर्मदेव शास्त्री के सामाजिक कार्यों का उल्लेख करते हुए उनकी सराहना की। संसद में यह पहली बार था जब जौनसारी समाज की समस्याओं और पिछड़ेपन पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई।

ढेबर आयोग का गठन…..।

1959 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 339(1) के तहत यू.एन. ढेबर आयोग का गठन किया।  इस आयोग को अनुसूचित जनजातियों की स्थिति की समीक्षा और उनके कल्याण के उपाय सुझाने का जिम्मा सौंपा गया। धर्मदेव शास्त्री आयोग के प्रमुख सदस्यों में शामिल किए गए। उन्होंने आयोग के समक्ष जौनसारी समुदाय की विशिष्ट संस्कृति और पिछड़ेपन को विस्तार से प्रस्तुत किया।

धर्मदेव शास्त्री का योगदान…..।

धर्मदेव शास्त्री ने स्थानीय स्तर पर शिक्षा और सामाजिक उत्थान की मुहिम चलाई। जिसका प्रमाण आज भी विकासनगर स्थित चिलियों अशोक आश्रम के रूप में स्थापित है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने जौनसारी जनजाति की पहचान को मान्यता दिलाने के लिए तथ्य और दस्तावेज़ रखे। उनकी मेहनत ने जौनसार-बावर की आवाज़ को दिल्ली तक पहुंचाया।

1967 की ऐतिहासिक अधिसूचना…….।

लंबी प्रक्रिया के बाद 24 जून 1967 को भारत सरकार ने The Constitution (Scheduled Tribes) (Uttar Pradesh) Order, 1967 जारी किया। इस अधिसूचना के तहत जौनसारी समुदाय को आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया।

जौनसारी समुदाय को ST दर्जा मिलना केवल संवैधानिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि यह एक दशक लंबे संघर्ष का परिणाम था। 1956 की संसदीय बहस, 1959 का ढेबर आयोग और 1967 की अधिसूचना—इन सभी में धर्मदेव शास्त्री का योगदान महत्वपूर्ण व निर्णायक रहा।

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