उत्तराखंड

संसद में 1956 की बहस से लेकर 1967 की अधिसूचना तक – तथ्य और मिथक का खुलासा……।

चकराता की जौनसारी जनजाति को ST दर्जा: धर्मदेव शास्त्री का योगदान, गुलाब सिंह जी की भूमिका पर सच्चाई….।

ब्यूरों रिपोर्टः विक्रम सिंह।

देहरादून ज़िले का चकराता क्षेत्र (जौनसार-बावर) अपनी अलग संस्कृति और परंपराओं के लिए पहचाना जाता है। यहां की जौनसारी जनजाति को 24 जून 1967 को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा मिला। लेकिन इस दर्जे के पीछे की कहानी अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत की जाती रही है।

संसद में उठा मुद्दा: धर्मदेव शास्त्री का उल्लेख……।

13 सितंबर 1956 को भारतीय संसद में हुई बहस में जौनसारियों को ST दर्जा देने की मांग पर चर्चा हुई। इस दौरान Shri J. Aspat Roy Kapoor ने समाजसेवी पंडित धर्मदेव शास्त्री का नाम लेते हुए उनकी सराहना की।

कपूर ने कहा कि वे जौनसारियों को अनुसूचित जाति या जनजाति में शामिल करने का समर्थन धर्मदेव शास्त्री के प्राधिकार और काका साहेब कालेलकर जैसे समाज सुधारकों के कथनों के आधार पर कर रहे हैं।

यह उल्लेख दर्शाता है कि धर्मदेव शास्त्री ने जौनसारी समाज की समस्याओं और पिछड़ेपन को उजागर करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।

गुलाब सिंह जी और “ST दर्जा दिलाने” का मिथक……।

स्थानीय स्तर पर यह धारणा फैलाई गई कि गुलाब सिंह, जो 1957 में पहली बार विधायक बने, ने जौनसारियों को ST दर्जा दिलाया।
लेकिन तथ्य साफ़ और स्पष्ट कुछ और कह रहे है।

1956 की बहस के समय गुलाब सिंह जी विधायक ही नहीं थे।

संसदीय अभिलेखों में उनका नाम नहीं आता।

जौनसारी समाज को ST दर्जा 1967 में केंद्र सरकार की अधिसूचना से मिला।

यह मिथक शायद बाद में पैदा हुआ, जब गुलाब सिंह जी विधायक के रूप में क्षेत्र में सक्रिय हुए और विकास कार्योँ मे अपना योगदान दिया।

केंद्र सरकार का फैसला…..।

जौनसारियों को ST दर्जा देने का निर्णय पूरी तरह केंद्र सरकार की रिपोर्ट और राष्ट्रपति की अधिसूचना पर आधारित था।

1967 में जारी आदेश में जौनसारी जनजाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए ST सूची में शामिल किया गया।

यह संभवतः भारत की एकमात्र जनजाति है जिसे विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर यह दर्जा मिला।

जौनसारी समाज की सांस्कृतिक पहचान…..।

यह समाज मुख्य रूप से चकराता, कालसी और त्यूणी तहसीलों में निवास करता है।

बिस्सु, माघ मेला, नुणाई जैसे त्योहार और डोल-दमॉऊ जैसे वाद्य आज भी यहां की पहचान हैं।

समाज की आंतरिक संरचना में राजपूत (खोश), ब्राह्मण, बाजगी, बढ़ई और दलित समुदाय शामिल हैं।

धर्मदेव शास्त्री का योगदान निर्विवाद है, जिन्होंने समाज सेवा के जरिए जौनसारियों की स्थिति को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।

Shri J. Aspat Roy Kapoor ने संसद में उनके प्रयासों का उल्लेख करके जौनसारियों के पक्ष में माहौल बनाया।

केवल गुलाब सिंह जी ने ही ST का दर्जा दिलाया ये दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है — यह बाद में बनाया गया एक मिथक है।

जौनसारियों को ST दर्जा दिलाना केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की अधिसूचना का परिणाम था, न कि किसी एक विधायक की पहल।

यह रिपोर्ट साफ़ करती है कि जौनसारी समाज का जनजातीय दर्जा किसी राजनीतिक नेता की देन नहीं, बल्कि समाजसेवियों की जागरूकता और केंद्र सरकार की प्रक्रिया का परिणाम था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button