वीर शहीद केजरीचंद : स्वतंत्रता संग्राम का एक अनसुनाया अध्याय।

ब्यूरों रिपोर्ट….।
3 मई 1945—यह तारीख इतिहास के पन्नों में उस वीर बलिदानी की शहादत के नाम दर्ज है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए हिम्मत और हौसले की मिसाल पेश की। वीर शहीद केजरीचंद, जौनसार-बावर क्षेत्र के एक साहसी सपूत, को इसी दिन अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था। लेकिन मौत भी उनके इरादों को झुका न सकी।
केजरीचंद न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि अपने क्षेत्र की आवाज भी थे। उस समय जौनसार-बावर जैसे दूरस्थ और जनजातीय क्षेत्र से किसी का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना एक असाधारण बात थी। उन्होंने स्थानीय लोगों को जागरूक किया, ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ आंदोलन चलाया और देश के लिए प्राणों की आहुति दी।
उनकी याद में हर वर्ष 3 मई को रामताल गार्डन, चकराता में मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि शहीद केजरीचंद की विरासत और बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम है। इसमें स्थानीय जनमानस जुटता है, श्रद्धा सुमन अर्पित करता है और उनके आदर्शों को आत्मसात करता है।
केजरीचंद का बलिदान हमें यह याद दिलाता है कि आज़ादी केवल मैदानों में नहीं, पहाड़ों और जंगलों में भी लड़ी गई थी। उनकी गाथा आज भी उत्तराखंड के लोगों को प्रेरणा देती है और यह विश्वास जगाती है कि जब तक देशभक्ति का जज़्बा ज़िंदा है, कोई भी ताकत स्वतंत्रता की लौ को बुझा नहीं सकती।
जय हिंद!