“वक्फ बोर्ड बिल पर बवाल: संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर उठे सवाल”

ब्यूरों रिपोर्ट
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल: धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण या प्रबंधन की पारदर्शिता?
हाल ही में संसद में पारित हुआ वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। जहां एक ओर सरकार इसे मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल इसे धार्मिक हस्तक्षेप और नियंत्रण की साजिश करार दे रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि इस बिल की प्रमुख धाराओं, संभावित प्रभावों और जन भावना पर उसके असर को निष्पक्ष रूप से समझा जाए।
वक्फ संपत्ति क्या है?
वक्फ एक इस्लामिक व्यवस्था है, जिसके तहत कोई मुसलमान अपनी संपत्ति को धार्मिक, परोपकारी या सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर देता है। इस संपत्ति का प्रबंधन वक्फ बोर्ड के जरिए होता है। भारत में लाखों एकड़ भूमि और संपत्ति वक्फ के तहत आती है – स्कूल, मस्जिद, कब्रिस्तान, अस्पताल और व्यापारिक परिसरों सहित।
संशोधन विधेयक की मुख्य बातें
1. डिजिटलीकरण और रिकॉर्ड अपडेट: वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकृत रिकॉर्ड अनिवार्य होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी और ज़मीन पर अवैध कब्जे रोके जा सकेंगे।
2. सीधी सरकारी निगरानी: राज्य सरकारें अब वक्फ बोर्ड की गतिविधियों पर अधिक व सीधा नियंत्रण रख सकेंगी।
3. नए नियुक्ति प्रावधान: वक्फ बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति के नियमों में बदलाव कर अधिक पेशेवर और विविध पृष्ठभूमि के लोगों को शामिल करने की कोशिश की गई है।
4. संपत्ति विवाद समाधान प्राधिकरण: वक्फ संपत्ति से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए विशेष न्यायिक निकाय गठित किया जाएगा।
सरकार का पक्ष….।
सरकार का दावा है कि वक्फ संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा या तो विवाद में उलझा है या अवैध कब्जे में है। नए संशोधनों से संपत्ति का संरक्षण, उपयोग और रखरखाव बेहतर होगा। साथ ही, डिजिटल रजिस्टर से पारदर्शिता बढ़ेगी और आय के स्रोत धर्मिक और सामाजिक कार्यों में बेहतर तरीके से इस्तेमाल हो सकेंगे।
विपक्ष और मुस्लिम संगठनों की चिंता…।
कई मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल इस विधेयक को धार्मिक मामलों में सरकारी दखल के तौर पर देख रहे हैं। उनके अनुसार,
सरकार का धार्मिक संपत्तियों पर इतना नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता पर खतरा मंडरा रहा है।
विशेष प्राधिकरण के गठन से न्यायिक प्रक्रिया पर सरकारी प्रभाव बढ़ सकता है।
कहीं यह किसी “बड़ी योजना” का हिस्सा तो नहीं?
विधेयक का उद्देश्य अगर सही है – यानी पारदर्शिता, संरक्षण और विकास – तो उसका स्वागत होना चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह सब बिना स्वायत्तता खोए, बिना धार्मिक भावनाओं को आहत किए और सामाजिक समरसता बनाए रखते हुए किया जा सकता है?
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में किसी भी धार्मिक संस्था के मामलों में दखल को लेकर पारदर्शिता और विश्वास का माहौल बनाना अनिवार्य है। वरना, यह कदम चाहे कितना ही प्रशासनिक क्यों न हो, उसे धार्मिक दमन के तौर पर पेश किया जा सकता है – और इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है।
वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 एक दोधारी तलवार है – यह पारदर्शिता और सुधार का जरिया भी बन सकता है, और धार्मिक विवादों का कारण भी। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इसे लागू करते समय कितनी संवेदनशीलता और निष्पक्षता बरतती है। क्या यह बिल मुस्लिम समाज में भरोसा जगा पाएगा या फिर एक और विवाद का बीज बन जाएगा – आने वाला समय इसका जवाब देगा।