अंतरराष्ट्रीय

नेपाल में उथल-पुथल: ओली सरकार के खिलाफ युवा बगावत, इस्तीफे से बदली राजनीतिक तस्वीर….।

ब्यूरो रिपोर्ट, विक्रम सिंह।

काठमांडू।

नेपाल इस वक्त गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ पिछले हफ्ते भड़के भीषण विरोध-प्रदर्शन ने पूरे देश की सियासत को हिला दिया है। युवाओं और छात्रों द्वारा शुरू किए गए ये आंदोलन देखते ही देखते व्यापक जनआक्रोश में बदल गए। सरकार की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पाबंदी लगाने का कदम इस आग में घी का काम कर गया।

कैसे भड़का जनाक्रोश….।

दरअसल, ओली सरकार ने करीब 26 लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पंजीकरण की शर्त लगाते हुए उन्हें प्रतिबंधित करने का ऐलान किया। यह फैसला नेपाल के युवाओं और डिजिटल पीढ़ी को नागवार गुजरा। सरकार का तर्क था कि “अनियंत्रित डिजिटल प्लेटफार्मों से सामाजिक अव्यवस्था फैल रही है”, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना।

सरकार के खिलाफ छात्रों और युवा समूहों ने सड़कों पर उतरकर विरोध शुरू किया। जल्द ही यह आंदोलन भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, भाई-भतीजावाद और खराब गवर्नेंस के खिलाफ एक बड़े अभियान में बदल गया।

प्रदर्शन से हिंसा तक…..।

राजधानी काठमांडू से लेकर प्रमुख शहरों तक प्रदर्शन फैल गए। संसद भवन और कुछ नेताओं के आवासों पर भीड़ ने धावा बोला। कई जगह आगज़नी और तोड़फोड़ हुई। सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पों में हालात बिगड़े। पुलिस की गोलीबारी और लाठीचार्ज में कम से कम 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।

हालात काबू से बाहर होते देख सरकार को सोशल मीडिया प्रतिबंध वापस लेना पड़ा, लेकिन तब तक आक्रोश थम नहीं पाया।

इस्तीफे से बदला समीकरण….।

भीषण दबाव और जनविरोध के बीच ओली सरकार में कई मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया। अंततः प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने भी पद छोड़ दिया। उनके इस्तीफ़े के बाद नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता और गहरा गई है। अब सवाल है कि सत्ता किसके हाथ में जाएगी और क्या जल्दी चुनाव कराए जाएंगे।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया….।

नेपाल में भड़की हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने चिंता जताई है। अमेरिका, यूरोप और भारत समेत कई देशों ने संयम बरतने और मानवाधिकारों की रक्षा की अपील की है। विदेशी दूतावासों ने कहा है कि नेपाल की लोकतांत्रिक परंपराओं और संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान होना चाहिए।

गहरी पृष्ठभूमि…..।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ये विरोध सिर्फ सोशल मीडिया प्रतिबंध की वजह से नहीं थे। बीते कुछ वर्षों में ओली की नीतियों, संसद भंग करने की कोशिशों और गवर्नेंस पर सवालों ने जनता में असंतोष पैदा किया था। युवाओं की नई पीढ़ी, जिसे “Gen Z Protesters” कहा जा रहा है, अब नेपाल की राजनीति में निर्णायक शक्ति बनकर उभरी है।

नतीजा…….।

नेपाल में ओली सरकार के पतन ने यह साफ कर दिया है कि डिजिटल युग में जनता की आवाज़ को दबाना आसान नहीं। सोशल मीडिया पर शुरू हुआ आंदोलन सड़कों पर उतरकर सत्ता पलटने का सबब बन गया। आने वाले दिनों में नेपाल की राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल देश गहरे संक्रमण के दौर से गुजर रहा है।

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