उत्तराखंड

चकराता विधानसभा क्षेत्र को जनजातीय दर्जा कैसे मिला: इतिहास, संघर्ष और योगदान…..।

ब्यूरों रिपोर्टः विक्रम सिंह।

उत्तराखंड के देहरादून जिले का चकराता विधानसभा क्षेत्र, जो मुख्यतः जौनसार-बावर क्षेत्र में आता है, 1967 से अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe – ST) का दर्जा प्राप्त क्षेत्र है। इस दर्जे की प्राप्ति केवल एक सरकारी अधिसूचना का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे लंबे समय तक चले सर्वेक्षण, सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन और स्थानीय नेतृत्व की सक्रिय भूमिका रही है।

1967 की ऐतिहासिक अधिसूचना….।

भारत सरकार ने 24 जून 1967 को अधिसूचना संख्या 107 जारी की, जिसके तहत जौनसारी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता मिली। यह मान्यता क्षेत्र की सामाजिक-सांस्कृतिक अलगाव, विशिष्ट परंपराओं और पिछड़ेपन को ध्यान में रखकर दी गई थी।

जनजातीय पहचान की कसौटियां और जौनसार-बावर…..।

1965 में बनी लोकुर समिति ने जनजातीय पहचान के पाँच मानदंड तय किए:

1. प्राचीन विशेषताएं

2. विशिष्ट संस्कृति

3. भौगोलिक अलगाव

4. बाहरी संपर्क से शर्मीलापन

5. पिछड़ापन

जौनसार-बावर इन सभी कसौटियों पर खरा उतरा। इस क्षेत्र की बहुपत्नी प्रथा का इतिहास, महासू देवता की पूजा परंपरा, स्थानीय बोली और रीति-रिवाज, तथा पहाड़ी अलगाव इसकी विशिष्ट पहचान थे।

ढेबर आयोग और बैकवर्ड क्लासेस कमीशन की भूमिका….।

1950–60 के दशक में गठित ढेबर आयोग और बाद में बने बैकवर्ड क्लासेस कमीशन ने भी जौनसार-बावर का गहन अध्ययन किया। उनकी रिपोर्टों में स्पष्ट उल्लेख था कि यह क्षेत्र सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा है और इसे अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

1969 की लोकसभा संयुक्त समिति की सुनवाई…..।

1967 की अधिसूचना के बाद भी यह सवाल उठा कि क्या (खश) जौनसारी (ब्राह्मण और राजपूत) को ST लाभ मिलना चाहिए या नहीं। इस पर 1969 में लोकसभा की संयुक्त समिति (Joint Committee on SCs & STs) ने सुनवाई की।

गुलाब सिंह (तत्कालीन विधायक, चकराता) ने समिति के सामने ठोस तथ्य रखे। उन्होंने बताया कि सरकारी नौकरियों में ब्राह्मणों की भागीदारी केवल 3%, राजपूतों की 4% और कोल्टा की 2% है। साथ ही, क्षेत्र की साक्षरता दर नगण्य थी।

उन्होंने जोर देकर कहा कि पूरे जौनसार-बावर क्षेत्र को सामूहिक रूप से ST का दर्जा दिया जाए, किसी को बाहर न किया जाए।

उनके साथ लेफ्टिनेंट कर्नल एच.एच. महाराजा मनबेंद्र शाह(टिहरी सासंद) और कई स्थानीय प्रतिनिधि (रतन सिंह चौहान, एस.डी. जोशी, जी.आर. जोशी, के.सी. शर्मा, इंध सिंह, मोहन सिंह, गुनिया आदि) ने भी गवाही दी।

इस सुनवाई ने 1967 की अधिसूचना को और मजबूती दी और पूरे क्षेत्र को जनजातीय लाभ मिलना सुनिश्चित हुआ।

धर्मदेव शास्त्री और सामाजिक चेतना……।

विकासनगर स्थित अशोक आश्रम के धर्मदेव शास्त्री सामाजिक सुधार और शिक्षा के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अंधविश्वास, जातीय असमानता और पिछड़ेपन के खिलाफ आवाज उठाई और स्थानीय युवाओं को प्रेरित किया। यद्यपि आधिकारिक दस्तावेजों में उनका सीधा नाम आयोग या समिति से जुड़ा नहीं मिलता, किंतु क्षेत्रीय जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन में उनका योगदान निस्संदेह महत्वपूर्ण था।

चकराता विधानसभा क्षेत्र को जनजातीय दर्जा मिलना मात्र सरकारी निर्णय नहीं था, बल्कि यह क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, भौगोलिक अलगाव और सामाजिक पिछड़ेपन की मान्यता थी। इसमें ढेबर आयोग, लोकुर समिति, 1969 की संयुक्त समिति, विधायक गुलाब सिंह, सासंद महाराजा मनबेंद्र शाह, स्थानीय प्रतिनिधियों और समाजसेवी धर्मदेव शास्त्री सभी की भूमिका रही है।

इसलिए यह कहना कि जनजाति के लिए जो कुछ किया वो स्वर्गीय गुलाब सिंह जी ने ही किया है ये अर्धसत्य है। क्योंकि इस पहल मे पूरी टीम का अहम योगदान है।

आज यह दर्जा जौनसार-बावर की पहचान का आधार है और क्षेत्र के विकास, शिक्षा और सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है।

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