“कांग्रेस ने लूटा, भाजपा ने ढका—युवा सड़क पर धकेला।”

उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं के साथ 20 साल का छलावा…….!
ब्यूरों रिपोर्ट,
भाग-1: जल विद्युत निगम (UJVNL) का काला अध्याय…..।
उत्तराखंड का युवा आज सड़कों पर है, लेकिन सरकार और विपक्ष दोनों ही बहरे बने बैठे हैं।
यह कोई नई कहानी नहीं है। यह 2005 से लेकर आज तक का लगातार चल रहा धोखा है।
आइए, एक घटना से पर्दा उठाते हैं, ताकि आप समझ सकें कि नेताओं और अफसरों ने कैसे इस राज्य को अपनी जेब भरने का अड्डा बना दिया।
26 नवंबर 2005 – UJVNL भर्ती घोटाले की कहानी…….।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम (UJVNL) में अधिशासी अभियंता (Executive Engineer) पद के लिए सीधी भर्ती साक्षात्कार आयोजित किया गया।
इस साक्षात्कार में कुल 7 अभ्यर्थी शामिल हुए।
चयन के लिए 6 सदस्यीय पैनल बनाया गया।
परिणाम क्या निकला?………
पैनल ने सुजीत कुमार सिंह और राजीव स्वरन का चयन अधिशासी अभियंता के लिए किया। यहां तक तो ठीक था।
लेकिन इसी इंटरव्यू में शामिल राजीव कुमार अग्रवाल और मनमोहन बलोदी को पैनल ने अधिशासी अभियंता के लिए “योग्य नहीं” पाया।
अब असली खेल देखिए……..।
इन्हीं दोनों “अयोग्य” अभ्यर्थियों को उसी दिन, उसी साक्षात्कार से पैनल ने सहायक अभियंता (Assistant Engineer) बना दिया।
यानी परीक्षा अधिशासी अभियंता की थी, लेकिन चयन सहायक अभियंता पर कर दिया गया।
सवाल जो सरकार से पूछे जाने चाहिए……।
1. जब भर्ती अधिशासी अभियंता पद के लिए थी, तो पैनल को सहायक अभियंता चुनने का अधिकार किसने दिया?
2. क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का खुला उल्लंघन नहीं है, जिसमें समान अवसर और न्याय की गारंटी दी गई है?
3. अधिशासी अभियंता का पद असल में प्रमोशन से भरा जाता है, तो फिर “सीधी भर्ती” का खेल क्यों खेला गया?
4. कांग्रेस सरकार के समय हुई यह धांधली और भाजपा सरकार मौन रहकर इसे आगे बढ़ा रही है, क्या यह दोनों दलों की सांठगांठ नहीं दिखाता?
बेरोजगारों के लिए सबक……….।
यह घटना बताती है कि चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, सत्ता में आने के बाद दोनों ने युवाओं के भविष्य के साथ छलावा किया है।
2005 में कांग्रेस ने बेरोजगारों के अधिकार लूटे।
आज भाजपा उन्हीं लोगों को प्रमोशन देकर उसी राह पर चल रही है।
उत्तराखंड का युवा पूछ रहा है कि,
“हमने राज्य अलग इसलिए बनाया था कि यहां रोजगार, पारदर्शिता और ईमानदारी होगी। लेकिन नेताओं-अफसरों ने इसे अपनी जेब गर्म करने का जरिया बना दिया।”
यह तो सिर्फ भाग-1 है।
भाग-2 में हम और साक्ष्य रखेंगे, ताकि यह साफ हो सके कि बेरोजगारों के साथ यह छलावा कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं, बल्कि एक “सिस्टमेटिक लूट” है।