नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से भारत की तुलना करने वाले भूल गए एक सच….!

ब्यूरो रिपोर्ट,
नई दिल्ली।
पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक आंदोलनों की तस्वीरों को देखकर भारत विरोधी खेमे में आशा की लपटें जगाना कोई नई बात नहीं है। जो लोग तीन-तीन बार एकजुट होकर भी नरेंद्र मोदी को चुनाव में पराजित नहीं कर पाए, वे अब नेपाल की आग में अपनी उम्मीद तलाश रहे हैं।
भारत का लोकतंत्र है मज़बूत, व्यवस्था है सशक्त
याद कीजिए, जब बांग्लादेश में हिंसा और मारकाट हुई थी, तब भी कुछ नेताओं और टिप्पणीकारों ने कहा था कि “जो वहां हो रहा है, वो भारत में भी हो सकता है।” श्रीलंका में अराजकता फैली तो मोदी विरोधियों की आंखों में चमक दिखने लगी। और अब नेपाल में युवाओं का आक्रोश देखकर वही मानसिकता फिर से सिर उठा रही है।
राहुल गांधी का ‘डंडों’ वाला बयान…..।
राहुल गांधी का वह बयान आज भी ताज़ा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि,
“ये जो नरेंद्र मोदी अभी भाषण दे रहा है। 7-8 महीने बाद ये घर से नहीं निकल पाएगा। हिंदुस्तान के युवा उसको डंडों से मारेंगे।”
ये शब्द केवल एक बयान नहीं थे, बल्कि उस मानसिकता का आईना थे जो लोकतंत्र और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।
भारत और पड़ोसी देशों में फर्क……।
नेपाल में पिछले 17 साल में 14 बार सरकार बदली।
श्रीलंका में पिछले 5 साल में 4 प्रधानमंत्री बदल चुके हैं।
बांग्लादेश लगातार राजनीतिक हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहा है।
वहीं, भारत में पिछले 11 वर्षों से जनता द्वारा चुनी गई एक स्थिर और मज़बूत सरकार काम कर रही है। नरेंद्र मोदी को देश ने तीन बार भारी बहुमत से चुनकर यह साबित कर दिया कि जनता उनके साथ है।
भारत का लोकतंत्र और व्यवस्था…..।
भारत की ताकत इसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था और मज़बूत संविधान में है। यहां आंतरिक विरोध का मतलब व्यवस्था को ध्वस्त करना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अपनी आवाज़ उठाना है। यही भारत की परिपक्वता है, जो हमें नेपाल, श्रीलंका या बांग्लादेश से अलग खड़ा करती है।
मोदी विरोधियों की इच्छा चाहे जितनी भी हो, भारत की तुलना दुनिया के किसी भी अस्थिर देश से नहीं की जा सकती। भारत का लोकतंत्र सशक्त है, जनता का विश्वास मज़बूत है और व्यवस्था किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम है। यही वजह है कि यहां अराजकता नहीं, बल्कि स्थिरता और विकास की राजनीति जनता का चुनाव बनती है।