हाईकोर्ट का आदेश, पंचायत चुनाव पर संकट….!

ब्यूरों रिपोर्ट
देहरादून | 13 जुलाई 2025
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच नैनीताल हाईकोर्ट का एक आदेश राज्य निर्वाचन आयोग के लिए नई मुसीबत बन गया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि जो व्यक्ति नगर निकाय और पंचायत – दोनों क्षेत्रों की मतदाता सूची में नाम दर्ज करवाए हुए हैं, वे पंचायत चुनाव में प्रत्याशी नहीं बन सकते।
उत्तराखंड में दोहरी वोटर लिस्ट वाले प्रत्याशियों की उम्मीदवारी पर रोक, निर्वाचन आयोग असमंजस में।
क्या है कोर्ट का आदेश?…..
नैनीताल हाईकोर्ट ने 11 जुलाई को दिए आदेश में साफ कहा है कि ‘नगर निकाय और पंचायत दोनों स्थानों की मतदाता सूची में नाम होना, ग्राम पंचायत की प्रत्याशिता के लिए अयोग्यता की श्रेणी में आता है।’ अदालत ने यह फैसला राज्य चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और कानून के अनुपालन की दृष्टि से दिया है।
चुनाव प्रक्रिया कहाँ तक पहुँची है?…
यह आदेश ऐसे समय में आया है जब,
नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
स्क्रूटनी (जांच) और नाम वापसी की तारीख भी निकल चुकी है।
अब प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी हो चुकी है और कई जगह तो मतदान की तैयारियाँ अंतिम चरण में हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग के सामने असमंजस….।
इस निर्णय से राज्य निर्वाचन आयोग मुश्किल में है। यदि कोर्ट के आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाता है तो…..
कई सीटों पर प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो सकते हैं।
कई वार्डों और पंचायतों में बिना उम्मीदवार के चुनाव हो सकते हैं।
पूरी चुनाव प्रक्रिया पर पुनर्विचार और स्थगन की नौबत आ सकती है।
हालात इतने पेचीदा हैं कि आयोग को समझ नहीं आ रहा कि वह कानून के अनुपालन को प्राथमिकता दे या लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अव्यवधान से पूरा करवाए।
प्रश्न कई, जवाब किसी के पास नहीं…..।
क्या पहले से नामित और मान्य प्रत्याशी अब रद्द होंगे?
क्या चुनाव टाले जाएंगे या प्रभावित क्षेत्रों में पुनः चुनाव कराए जाएंगे?
क्या निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करेगा?
क्या ये आदेश रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्व-लागू) माना जाएगा या अगले चुनाव से लागू होगा?
इन सभी सवालों के जवाब फिलहाल अधर में हैं।
क्या कहता है कानून?…..
उत्तराखंड पंचायत चुनाव नियमावली के अनुसार, ग्राम पंचायत क्षेत्र में प्रत्याशी बनने के लिए व्यक्ति का वहीं का स्थायी निवासी और मतदाता होना अनिवार्य है।
यदि वही व्यक्ति किसी नगर निकाय में भी वोटर के रूप में पंजीकृत है, तो वह ‘ग्राम क्षेत्र का मतदाता’ नहीं माना जाएगा – और यही आधार हाईकोर्ट के आदेश का है।
क्या हो सकता है आगे का रास्ता?….।
राज्य निर्वाचन आयोग के पास फिलहाल तीन विकल्प हैं।
1. कोर्ट से आदेश की स्पष्ट व्याख्या मांगना – ताकि वर्तमान चुनाव प्रभावित न हों।
2. सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करना – और आदेश के तत्काल प्रभाव पर रोक की मांग करना।
3. प्रभावित प्रत्याशियों की उम्मीदवारी निरस्त करना, लेकिन इससे चुनाव स्थगन और विवाद की आशंका है।
जनता की प्रतिक्रिया….।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां यह आदेश लागू होगा, वहां भारी नाराजगी और भ्रम देखा जा रहा है। कई जगह प्रत्याशी पहले ही लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं, प्रचार अभियान में जुटे हैं, और अब उन्हें अपनी वैधता पर खतरा महसूस हो रहा है।
नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश चुनावी शुचिता और कानून के सम्मान के लिए आवश्यक हो सकता है, मगर इसकी टाइमिंग ने पूरी चुनाव प्रक्रिया को झकझोर दिया है। अब देखना यह है कि राज्य निर्वाचन आयोग इस संवैधानिक चुनौती से कैसे निपटता है – क्या लोकतंत्र का उत्सव निर्विवाद पूरा होगा, या एक नया अध्याय शुरू होगा?