उत्तराखंड में बाहरियों का राज, और पहाड़ का युवा बे-रोज़गार….।
ब्यूरों रिपोर्ट
नौकरी भी गई, जमीन भी गई… बेटियाँ भी सुरक्षित नहीं?
उत्तराखंड राज्य सिर्फ़ नक़्शे पर बना था या पहाड़ियों के हक़ और सम्मान के लिए, आज यह सवाल हर उस युवा के चेहरे पर लिखा है जो डिग्री लेकर सड़कों पर है,
और हर उस माँ की आँखों में है जिसकी बेटी असुरक्षित महसूस कर रही है।
PWD में संविदा JE: “संविदा” का खेल, “स्थायीकरण” का सच…..।।
उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने जिस मुद्दे को उठाया है, वह कोई आरोप नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की गंभीर विफलता का दस्तावेज़ी संकेत है।
PWD विभाग में संविदा के नाम पर बड़ी संख्या में JE लगाए गए।
इन नियुक्तियों में बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के युवाओं की बहुलता।
और आज वही संविदा JE परमानेंट किए जा रहे हैं।
यह सब तब हो रहा है जब उत्तराखंड का युवा लिखित परीक्षा की तारीख तक नहीं देख पा रहा,
चयन प्रक्रियाएँ सालों से लटकी हैं,
और योग्य स्थानीय उम्मीदवार कटऑफ से पहले ही सिस्टम से बाहर कर दिए जा रहे हैं।
ग्रुप C: आख़िरी उम्मीद भी बाहरियों के हवाले……।
ग्रुप C की नौकरियाँ हमेशा से स्थानीय युवाओं की रीढ़ मानी जाती रही हैं। लेकिन अब चुपके से ग्रुप C में भी बाहरी युवाओं की एंट्री कराई जा रही है।
कोई सार्वजनिक सूची नहीं,
कोई स्पष्ट डोमिसाइल नीति नहीं,
कोई जवाबदेही नहीं।
सवाल यह नहीं कि बाहर का युवा काम क्यों करे
सवाल यह है कि उत्तराखंड के युवाओं को क्यों नहीं?
कार्मिक सचिव तक शिकायत: अब सरकार की बारी….।
इस पूरे मामले की औपचारिक शिकायत कार्मिक सचिव को दी जा चुकी है।
अब यह मुद्दा सड़क का नहीं, सीधे शासन की मेज़ पर है।
अब चुप्पी का मतलब होगा।
सहमति।
संरक्षण।
और पहाड़ी युवाओं के हक़ की खुली लूट।
डाकिया बाहर का, कंपनी बाहर की, मैनेजर बाहर का…।
आज उत्तराखंड में,
डाकिया बाहर का
ठेकेदार बाहर का
कंपनी बाहर की
मैनेजर बाहर का
और अब सरकारी नौकरी भी बाहरियों की
तो पहाड़ का युवा क्या करे?…
पलायन
दिहाड़ी
होटल–ढाबे में बर्तन धोय
या आंदोलन
यह सिर्फ़ बेरोज़गारी नहीं,
यह योजनाबद्ध हाशियाकरण है।
नौकरी छीनी गई तो बेटियाँ असुरक्षित हुईं — अंकिता भंडारी सिर्फ़ एक केस नहीं…….।
जब समाज से,
रोजगार छीना जाता है
सम्मान छीना जाता है
और सत्ता कुछ लोगों को अपराध से ऊपर खड़ा कर देती है तो अंकिता भंडारी जैसी घटनाएँ जन्म लेती हैं।
अंकिता कोई अपवाद नहीं थी वह उस सिस्टम का परिणाम थी जहाँ…….।
सत्ता संरक्षित लोग बेलगाम हैं
और आम पहाड़ी बेटी अकेली।
आज भी उत्तराखंड पूछ रहा है कि,
क्या अंकिता को पूरा न्याय मिला?
क्या दोषियों के राजनीतिक संरक्षण पर से पर्दा उठा?
क्या बेटियों की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता है?
धामी सरकार से पाँच सीधे और असहज सवाल…..।
PWD में संविदा JE की राज्यवार सूची सार्वजनिक क्यों नहीं?
स्थायीकरण से पहले स्थानीय युवाओं को अवसर क्यों नहीं?
ग्रुप C में डोमिसाइल नीति को कमजोर किसने किया?
बेरोज़गारी आयोग की रिपोर्ट पर सरकार कब बोलेगी?
अंकिता भंडारी मामले में नैतिक जिम्मेदारी कौन लेगा?
यह लड़ाई नौकरी की नहीं, पहचान की है
अगर आज पहाड़ का युवा चुप रहा,
तो कल पहाड़ में सिर्फ़ सड़कें होंगी
पहाड़ी नहीं।
यह वक्त है सवाल पूछने का,
हक़ माँगने का,
और सरकार को आईना दिखाने का।
उत्तराखंड खामोश नहीं रहेगा।