उत्तराखंड

धामी सरकार पर घिरता उत्तराखंड का युवाजन आन्दोलन……।

ब्यूरो रिपोर्ट,

देहरादून की सड़कों पर लेटे ये युवा किसी फिल्मी दृश्य के हिस्से नहीं हैं, न ही इन्हें फुटपाथ पर सोने का कोई शौक है। यह दृश्य उत्तराखंड के उस दर्दनाक सच को उजागर करता है, जिसमें एक-एक छात्र का टूटा सपना, हजारों परिवारों की उम्मीदों पर पड़ा बोझ और सरकार की नाकामी साफ झलकती है।

पेपर लीक ने केवल परीक्षार्थियों को ही नहीं, बल्कि उनके माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार और पूरे समाज की भावनाओं को गहरी चोट पहुंचाई है। जिन घरों की माताओं ने बेटे-बेटियों की पढ़ाई के लिए अपने मंगलसूत्र गिरवी रखे, जिन बापों ने खेत बेचकर बच्चों को कोचिंग भेजा, आज वही परिवार अपने सपनों की लाश ढो रहे हैं।

सरोकार को व्यापार बना चुके नेताओं और सत्ता के दलालों ने शिक्षा को एक धंधा बना दिया है। नौकरियों के नाम पर युवाओं को छलने वाले ये माफिया सत्ता की छत्रछाया में पनप रहे हैं। धिक्कार है उन कानून के रखवालों पर, जो इन माफियाओं को संरक्षण देकर पीढ़ियों का भविष्य लूट रहे हैं।

धामी सरकार पर सवाल……..।

राज्य सरकार इस पूरे प्रकरण में लगातार बैकफुट पर है। युवाओं का कहना है कि धामी सरकार ने या तो जानबूझकर चुप्पी साध रखी है या फिर माफिया के दबाव में है। दोनों ही स्थिति में सरकार की साख तार-तार हो चुकी है।

उत्तराखंड के युवाओं की आवाज अब सड़कों से संसद तक गूंजने लगी है। यह केवल रोजगार का सवाल नहीं, बल्कि न्याय और मर्यादा का सवाल है। अगर धामी सरकार में जरा भी नैतिकता बची है, तो उसे तुरंत सीबीआई जांच के आदेश जारी करने चाहिए।

मोदी सरकार की भूमिका………।

युवाओं का गुस्सा अब केवल राज्य सरकार तक सीमित नहीं है। उनकी नजरें अब केंद्र की मोदी सरकार पर भी टिकी हैं। क्योंकि जब राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल है, तो क्या केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी?
देश के प्रधानमंत्री बार-बार युवाओं के हितैषी होने का दावा करते हैं। तो फिर उत्तराखंड के लाखों युवाओं की यह पुकार क्यों अनसुनी की जा रही है? अगर मोदी सरकार सचमुच युवाओं की उम्मीदों की सरकार है, तो उसे तत्काल धामी सरकार से जवाब-तलब करना चाहिए।

युवाओं की चेतावनी……….।

साफ है कि अब युवा चुप बैठने वाले नहीं हैं। सड़कों पर उतरकर संघर्ष करना उनके लिए मजबूरी बन चुका है। अगर केंद्र और राज्य सरकार ने जल्द ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन एक बड़े जनांदोलन का रूप ले सकता है।

यह सिर्फ पेपर लीक का मसला नहीं है, यह उत्तराखंड के भविष्य का सवाल है। और इस बार युवा किसी समझौते के मूड में नहीं हैं।

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