उत्तराखंड

सत्ता में बैठी महिलाओं की चुप्पी और राजनीतिक जवाबदेही……।

“पहाड़ का सच” | उत्तराखंड

उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी की हत्या केवल एक आपराधिक घटना नहीं थी। यह उस व्यवस्था का आईना बन गई, जहाँ महिलाओं की सुरक्षा, सत्ता का संरक्षण और राजनीतिक प्रभाव एक खतरनाक संगम में दिखाई दिए। सितंबर 2022 में 19 वर्षीय अंकिता की हत्या और मई 2025 में दोषियों को उम्रकैद की सजा, यह न्याय की दिशा में कदम है, लेकिन पूरी सच्चाई अब भी सवालों से घिरी है।

सवाल सत्ता से नहीं, महिला प्रतिनिधित्व से है……..।

उत्तराखंड विधानसभा में भाजपा की सात महिला विधायक हैं। ऋतु खंडूरी भूषण (स्पीकर), रेखा आर्या (मंत्री), सविता कपूर, शैला रानी रावत, रेनू बिष्ट, सरिता आर्या और पार्वती दास।
इनसे उम्मीद थी कि वे इस मामले में महिलाओं की सामूहिक आवाज़ बनेंगी।

शुरुआती दौर में ऋतु खंडूरी भूषण ने राजस्व पुलिस व्यवस्था खत्म करने की मांग उठाई। रेनू बिष्ट रिसॉर्ट ध्वस्तीकरण की कार्रवाई में सामने आईं। लेकिन इसके बाद…..लंबी चुप्पी।

चुप्पी जो सवाल बन गई…………..।

बाकी महिला विधायकों की ओर से

न पीड़ित परिवार के साथ खुला समर्थन,

न VIP एंगल पर सार्वजनिक सवाल,

न सत्ता से जवाबदेही की मांग।

जब अंकिता की माँ न्याय की गुहार लगा रही थीं, जब सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप लगे, और जब सत्ता से जुड़े नाम सामने आए, तब महिला प्रतिनिधित्व कहाँ था?

“बेटी बचाओ” बनाम ज़मीनी सच्चाई……….।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ—यह नारा तब खोखला लगता है, जब सत्ता में बैठी महिलाएं ही ऐसे मामलों में मुखर नहीं होतीं।
राजनीति में चुप्पी तटस्थता नहीं होती, अक्सर यह सुविधाजनक सहमति होती है।

VIP एंगल और नए खुलासे…………।

पूर्व भाजपा विधायक की सहयोगी उर्मिला राठौर के हालिया आरोपों ने सत्ता को फिर कठघरे में खड़ा किया है। पार्टी ने इसे साजिश बताया, लेकिन जनता का सवाल बना हुआ है। क्या निष्पक्ष, पारदर्शी जांच होगी?
और इस पर महिला विधायकों का स्टैंड क्या है? यह जानना भी जनता का अधिकार है।

अब जवाबदेही का समय…………….।

उत्तराखंड की महिलाएं ऐतिहासिक रूप से मजबूत और स्वावलंबी रही हैं। ऐसे में महिला विधायकों से अपेक्षा केवल पद की नहीं, संवेदनशीलता, साहस और जवाबदेही की है।
अंकिता का मामला याद दिलाता है महिलाओं की सुरक्षा कोई चुनावी मुद्दा नहीं, सामाजिक दायित्व है।

हिमालयन वाइस मानता है कि यदि सत्ता और विपक्ष दोनों की महिला जनप्रतिनिधि, ऐसे मामलों में एकजुट होकर बोलें, तो बदलाव संभव है।
आज जरूरत है पारदर्शी जांच, पीड़ित परिवार के साथ ठोस समर्थन और हर जुड़े नाम की जवाबदेही की।

अंतिम सवाल…
क्या उत्तराखंड की सत्ता में बैठी महिलाएं केवल पद पर हैं या पीड़ा में भी साथ है?

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