अपनों ने ही खोली पोल “बुलडोज़र से सबूत नहीं, सच दबाया गया”
ब्यूरों रिपोर्ट
अंकिता भंडारी हत्याकांड: बुलडोज़र, VIP और सवालों के घेरे में सत्ता…..।
उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी को मरे ढाई साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन उसका न्याय आज भी फ़ाइलों और बयानों में दबा हुआ है।
अब यह सवाल विपक्ष नहीं पूछ रहा,
अब यह सवाल “सरकार विरोधी” नहीं पूछ रहे,
अब यह सवाल भाजपा के अपने ही एक पूर्व विधायक की पत्नी के LIVE खुलासों से उठ रहे हैं।
और जब अपने ही बोलने लगें,तो साज़िश का नैरेटिव भी लड़खड़ा जाता है।
LIVE खुलासे और सत्ता में हड़कंप…..।
सोशल मीडिया पर सामने आए LIVE बयानों में जिस VIP का नाम इशारों-इशारों में सामने आ रहा है,
उस पर अब तक
न कोई FIR
न पूछताछ
न बयान
न सरकारी स्पष्टीकरण।
सवाल सीधा है कि,
क्या उत्तराखंड में कानून VIP देखकर बदल जाता है?
आधी रात का बुलडोज़र: सबूत मिटाने का आरोप…..।
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद यमकेश्वर क्षेत्र में घटना स्थल पर आधी रात को बुलडोज़र चलाया गया।
सरकार भी इस तथ्य को पूरी तरह नकार नहीं पाई।
अब ज़रा कानून को समझते हैं।
भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा 201
“किसी अपराध के सबूतों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना स्वयं एक गंभीर अपराध है।”
यदि मूल अपराध हत्या जैसा गंभीर हो, तो 7 साल तक की सज़ा और जुर्माना है।
यह कानून साफ़ कहता है कि,
यह आम नागरिक और जनप्रतिनिधि, दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
तो फिर सवाल उठता है कि…
सबूतों पर बुलडोज़र चलाने वालों पर IPC 201 क्यों नहीं लगी?
जिनके आदेश पर यह हुआ, उनसे पूछताछ क्यों नहीं हुई?
क्या सत्ता में बैठे लोगों के लिए अलग न्याय व्यवस्था है?
अगर यही काम कोई आम नागरिक करता,
तो क्या वह अब तक जेल में न होता?
‘बेटी बचाओ’ या ‘VIP बचाओ’?…….
प्रधानमंत्री मंच से कहते हैं। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”
मुख्यमंत्री कहते हैं कि “उत्तराखंड में अपराध बर्दाश्त नहीं”
लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि,
बेटी मारी जाती है
सबूत मिटाए जाते हैं
VIP का नाम आते ही जाँच ठहर जाती है।
तो जनता पूछ रही है कि…..
क्या ‘बेटी बचाओ’ सिर्फ़ नारा था?
और असल नीति ‘VIP बचाओ’ है?
CBI जाँच से डर किसे है?….
अंकिता के माता-पिता शुरू से ही CBI जाँच की मांग कर रहे हैं।
अब जब सत्ता पक्ष के अंदर से ही सवाल उठने लगे हैं,
तो फिर सरकार पीछे क्यों हट रही है?
अगर सरकार के हाथ साफ़ हैं तो…
CBI जाँच से सच सामने आना चाहिए।
दोषी कोई भी हो, सज़ा मिलनी चाहिए।
CBI से भागना खुद संदेह को जन्म देता है।
सोशल मीडिया पर ‘गट्ठू’ नाम क्यों गूंज रहा है?…..
सोशल मीडिया यूँ ही किसी नाम को ट्रेंड नहीं कराता।
जब संस्थाएं चुप हो जाती हैं,तो जनता सवाल पूछने लगती है।
‘गट्ठू’ नाम का चलन इस बात का संकेत है कि लोग आधिकारिक जाँच से संतुष्ट नहीं हैं। लोग मान रहे हैं कि सच छुपाया जा रहा है। यह सिर्फ़ अंकिता की नहीं, हर बेटी की लड़ाई है।
यह लड़ाई……
सत्ता बनाम संविधान की है।
VIP संस्कृति बनाम न्याय की है।
और सबसे ज़रूरी उत्तराखंड की बेटियों के भविष्य की है। अगर आज चुप रहे,तो कल फिर कोई अंकिता मरेगी
और हम फिर पोस्ट लिखेंगे…।
हमारी स्पष्ट माँगें…..।
सभी सामने आए नामों की निष्पक्ष जाँच हो,
सभी प्रभावशाली व्यक्तियों के बयान दर्ज हों,
सबूत मिटाने के आरोपों पर IPC 201 के तहत कार्रवाई हो।
CBI द्धारा स्वतंत्र और पारदर्शी जाँच हो,
पद, पार्टी और रसूख से ऊपर कानून हो,
न्याय आधा नहीं, पूरा चाहिए……।
उत्तराखंड की बेटी अंकिता को न्याय चाहिए,
भीख नहीं, एहसान नहीं, संविधान के अनुसार पूरा न्याय।
पहाड़ का सच……।
जहाँ सत्ता से सवाल पूछे जाते हैं,
और पहाड़ की आवाज़ दबने नहीं दी जाती।