वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज विवाद: दान हिन्दुओं का, सीटें दूसरों की क्यों?……।

ब्यूरों रिपोर्ट
श्री माता वैष्णो देवी- आस्था, श्रद्धा और सनातन विश्वास का ऐसा तीर्थ जहाँ हर साल करोड़ों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। इन्हीं श्रद्धालुओं के दान से बना है श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, जिसने हाल ही में ‘श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस’ नाम से एक आधुनिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की।
पर अब यही संस्थान विवादों के केंद्र में है। वजह- सीटों का बंटवारा।
विवाद की जड़……….।
कॉलेज के MBBS प्रथम बैच की 50 सीटों में से 42 सीटें मुस्लिम छात्रों को, 7 सीटें हिन्दू छात्रों को और 1 सीट सिख छात्र को मिलने की बात सामने आई।
जैसे ही यह सूची सार्वजनिक हुई, जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि पूरे देश में आक्रोश फैल गया। हिन्दू संगठनों ने सड़कों पर उतरकर सवाल उठाया।
“जब दान हिन्दुओं का, संस्था हिन्दू देवी के नाम पर बनी, तो फिर हिन्दू छात्रों की इतनी बड़ी अनदेखी क्यों?”
प्रशासन का पक्ष………।
कॉलेज प्रशासन और श्राइन बोर्ड का कहना है कि प्रवेश पूरी तरह NEET मेरिट लिस्ट के आधार पर हुआ है। धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया। कॉलेज को फिलहाल माइनॉरिटी संस्थान का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए धर्म आधारित कोटा लागू नहीं हो सकता।
पर सवाल यह है कि जब पूरी निधि हिन्दू तीर्थ दान से बनी हो, तो क्या केवल “तकनीकी प्रक्रिया” के नाम पर श्रद्धालुओं की भावना को नजरअंदाज किया जा सकता है?
हिन्दू संगठनों का आक्रोश……..।
राष्ट्रीय बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद और कई अन्य संगठनों ने इसे “हिन्दू आस्था के साथ अन्याय” बताया है। उनका कहना है कि,
“माता वैष्णो देवी का संस्थान किसी सरकारी खजाने से नहीं, बल्कि भक्तों की आस्था और अर्पण से बना है। इस पर पहला हक उन्हीं का होना चाहिए।”
कई संगठनों ने यह भी मांग की है कि,
इस मेडिकल कॉलेज को हिन्दू माइनॉरिटी संस्थान का दर्जा दिया जाए।
प्रवेश प्रक्रिया में हिन्दू छात्रों के लिए कम से कम 50% आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
सवाल सिर्फ सीटों का नहीं……..।
यह विवाद सिर्फ धर्म या राजनीति का नहीं- यह आस्था बनाम प्रशासनिक ठंडेपन का मामला है।
जब लाखों श्रद्धालु अपने तन-मन-धन से माता वैष्णो देवी के दरबार में योगदान देते हैं, तो उनका यह अधिकार बनता है कि उस दान का सदुपयोग उनकी संस्कृति और समाज के उत्थान के लिए हो।
अगर वह धन ऐसे संस्थानों में इस्तेमाल हो, जहाँ हिन्दू छात्रों को ही हाशिये पर रख दिया जाए, तो यह सवाल तो उठेगा ही
“क्या हिन्दू आस्था अब दान देती रहे और उसका लाभ कोई और ले जाए?”
वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज का यह विवाद केवल एक कॉलेज की सीटों तक सीमित नहीं है। यह एक प्रतीकात्मक सवाल है — हिन्दू दान और आस्था के उपयोग की पारदर्शिता का।
अब गेंद श्राइन बोर्ड और प्रशासन के पाले में है। उन्हें यह तय करना होगा कि
“क्या वे हिन्दू श्रद्धालुओं के भरोसे की लाज रखेंगे या इसे एक और सरकारी औपचारिकता बना देंगे।”

