राष्ट्रीय

“झूठ का टूलकिट: लोकतंत्र में दंगा कराने की साज़िश”

ब्यूरों रिपोर्ट,

विक्रम सिंह।

देश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका सत्ता को जवाबदेह बनाने की होती है, लेकिन जब यह भूमिका झूठ, अफवाह और सुनियोजित प्रोपेगेंडा पर टिकी हो तो उसका सीधा असर लोकतंत्र की जड़ों पर पड़ता है। हाल ही में सामने आया मामला इसी का जीता-जागता उदाहरण है, जहाँ कुछ पत्रकार, बुद्धिजीवी और कांग्रेस पार्टी एक सुनियोजित साज़िश के तहत देश को दंगों की आग में झोंकने की तैयारी कर रहे थे।

संजय कुमार और “लोकनीति CSDS” की भूमिका…..

11 अगस्त को CSDS से जुड़े संजय कुमार ने एक ट्वीट किया, जो सरासर सफेद झूठ पर आधारित था।

उसी दिन रात को वे टीवी चैनलों पर घूम-घूमकर उसी झूठ को दोहराते रहे।

कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उन्होंने झूठ को “डेटा” और “विश्लेषण” का चोला पहनाकर प्रस्तुत किया।

यह सिलसिला पूरे हफ्ते चला और राहुल गांधी की तथाकथित “झूठ बोलो यात्रा” तक पहुंचा।

इतना ही नहीं, 18 अगस्त 2025 को नवभारत टाइम्स में उनका लेख प्रकाशित हुआ। “वोट चोरी पर जवाब… चुनाव आयोग खुद ही अपने पैर पर मार रहा कुल्हाड़ी”। यह लेख पूरी तरह से चुनाव आयोग पर अविश्वास और जनता के मन में भ्रम फैलाने की सुनियोजित कोशिश थी।

अफवाह की राजनीति और “मीन्ता देवी” प्रकरण….

इस प्रोपेगेंडा की पोल तब खुली जब बिहार की एक साधारण महिला मीन्ता देवी ने खुद टीवी पर आकर सच बताया।
उसका कहना था,
“हम तो दैहाती औरत हैं, जो लोग कहेंगे वही सच मानेंगे। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि बोलो कि तुम्हारा नाम वोटर लिस्ट से गायब है।”

स्पष्ट है कि आम जनता को गुमराह करने और भावनाओं से खेलने के लिए कांग्रेस ने ग्रामीण महिलाओं तक का इस्तेमाल करने से परहेज़ नहीं किया।

राहुल गांधी की साज़िश और लुटियन गैंग…..।

इस पूरी मुहिम में कांग्रेस के साथ वे तथाकथित लुटियन पत्रकार और बुद्धिजीवी भी खड़े थे, जो लंबे समय से मोदी विरोध को अपनी वैचारिक आजीविका बना चुके हैं।

संजय गुप्ता जैसे पत्रकार सोनिया गांधी के खासमखास माने जाते हैं और लगातार जनता को भड़काने का काम कर रहे हैं।

कांग्रेस, CSDS और मीडिया का एक वर्ग मिलकर “मोदी विरोध” को “देश विरोध” में बदलने पर तुला है।

लोकतंत्र पर हमला- यह राजनीति नहीं, अपराध है….।

लोकतंत्र में असहमति का अधिकार है, लेकिन झूठ और प्रोपेगेंडा के आधार पर जनता को भड़काना, वोटरों को गुमराह करना और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को बदनाम करना एक क्रिमिनल एक्ट है।

यह केवल राजनीतिक चाल नहीं बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने की साज़िश है।

जब जनता ही झूठे नैरेटिव के आधार पर उकसाई जाएगी तो उसके परिणाम दंगे और अराजकता के रूप में सामने आ सकते हैं।

अब क्या ज़रूरी है?……

चुनाव आयोग को इस पूरे मामले पर संज्ञान लेना चाहिए।

फर्जी प्रोपेगेंडा चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।

लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश करने वाले संगठनों और व्यक्तियों की जांच हो।

मीडिया और बुद्धिजीवियों की जवाबदेही तय हो, ताकि वे अपनी कलम और मंच को झूठ फैलाने का हथियार न बना सकें।

देश में विपक्ष की राजनीति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, लेकिन विपक्ष अगर झूठ और भ्रम फैलाने पर उतर आए तो यह विपक्ष नहीं बल्कि राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र बन जाता है। संजय कुमार और CSDS की भूमिका इस बात का साफ सबूत है कि बौद्धिक टूलकिट के जरिए भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। अब समय आ गया है कि इस साज़िश पर नकेल कसी जाए, वरना कल यही झूठ देश को एक और बड़े दंगे की ओर धकेल सकता है।

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