उत्तराखंड

“सेवा का संस्कार: कर्नल कोठियाल का त्याग, पूर्व सैनिकों के नाम”

एक आदर्श जो हर नेता और अधिकारी के लिए मिसाल है

 विक्रम सिंह।

देहरादून। उत्तराखंड की वीरभूमि एक बार फिर गर्व से सिर ऊंचा कर सकती है – इस बार किसी रणभूमि की जीत के लिए नहीं, बल्कि उस इंसान के लिए जिसने अपने पद, प्रतिष्ठा और सरकारी सुविधाओं को ठुकराकर देश सेवा की असली परिभाषा गढ़ी है। हम बात कर रहे हैं कर्नल अजय कोठियाल की – सेना के रणबांकुरे, सामाजिक सेवा के प्रहरी और आज के दौर में नैतिक मूल्यों के सच्चे प्रतिनिधि।

पूर्व सैनिकों के लिए त्याग का संदेश…..

उत्तराखंड सरकार ने जब कर्नल कोठियाल को पूर्व सैनिक कल्याण परिषद का अध्यक्ष नियुक्त किया, तो इसके साथ उन्हें सरकारी सुविधाएं, भत्ते और संसाधन भी मिले। परंतु कर्नल कोठियाल ने इन सारी सुविधाओं को ससम्मान लौटा दिया। उनका सीधा और स्पष्ट कहना है कि

“मैंने सेना में नौकरी की है, वहां से जो पेंशन मिलती है, वही मेरे लिए काफी है। बाकी संसाधन पूर्व सैनिकों के कल्याण में लगने चाहिए।”

इस निर्णय से न सिर्फ उन्होंने एक मिसाल कायम की, बल्कि एक गूंगी होती संवेदनशीलता को भी झकझोर कर रख दिया। आज जब नेता और अधिकारी सरकारी पदों को “सुविधाओं के पैकेज” की तरह इस्तेमाल करते हैं, वहां कर्नल कोठियाल का यह त्याग आंखें खोलने वाला है।

कौन हैं कर्नल अजय कोठियाल?….

भारतीय सेना में स्पेशल फोर्सेज के कमांडर रह चुके हैं।

केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई।

यूथ फाउंडेशन के ज़रिए हजारों युवाओं को सेना भर्ती के लिए तैयार किया।

2022 में राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई, लेकिन सेवा और समाज के मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया।

क्यों है यह निर्णय इतना महत्वपूर्ण?…..

1. पूर्व सैनिकों के लिए समर्पण का प्रतीक:-

यह संदेश देता है कि जो पद हमें पूर्व सैनिकों के लिए काम करने के लिए मिला है, उसका इस्तेमाल अपने लिए नहीं, बल्कि उन्हीं के कल्याण के लिए होना चाहिए।

2. नेताओं और अफसरों के लिए आईना:-
जहां तमाम जनप्रतिनिधि हर सरकारी सुविधा को “हक़” समझते हैं, वहां कर्नल कोठियाल का यह कदम एक आईना है। जिसमें लालच और लोकसेवा का फर्क साफ झलकता है।

3. सरकारी संसाधनों की मर्यादा:-
उनका यह त्याग सरकार को भी यह सोचने पर मजबूर करता है कि संसाधनों का प्राथमिक उपयोग उन लोगों के लिए हो जो वास्तव में ज़रूरतमंद हैं।

सवाल जो यह कदम उठाता है:-

क्या हर सरकारी पदधारी को सुविधाएं स्वीकार करना ज़रूरी है?

क्या पूर्व सैनिकों का हक़ उन्हें पूरी तरह मिल रहा है?

क्या हम भी अपने-अपने स्तर पर कोई ‘त्याग’ करके किसी जरूरतमंद की मदद कर सकते हैं?

एक उदाहरण, एक प्रेरणा…….

कर्नल अजय कोठियाल का यह फैसला सिर्फ एक समाचार नहीं है। यह एक उदाहरण है, एक प्रेरणा है और एक चुनौती भी, उन सभी लोगों के लिए जो सेवा का चोला पहनकर सुविधाओं की दौड़ में लगे हैं।

उनका जीवन और यह निर्णय हमें यह सिखाता है कि असली पद वही है, जो जिम्मेदारी का बोध कराए, न कि आराम का अवसर दे।

कर्नल कोठियाल को सलाम…..।

जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि “एक सच्चा सैनिक कभी रिटायर नहीं होता, वह सिर्फ एक नई सेवा की शुरुआत करता है।”

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